अलीगढ़: आज के दौर में क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. खरीदारी से लेकर ऑनलाइन पेमेंट तक ज्यादातर लोग इसकी सुविधा का लाभ उठा रहे हैं, लेकिन मुस्लिम समाज में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या इस्लाम में क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल जायज़ है या नहीं? इसी सवाल को लेकर हमने अलीगढ़ के चीफ मुफ्ती मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन से खास बातचीत की.
इस्लाम में क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल जायज़ है या नहीं, इसके बारे में जानकारी देते हुए अलीगढ़ के चीफ मुफ्ती मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन ने बताया कि इस्लाम में क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल को लेकर अक्सर लोगों के मन मे सवाल रहता है कि इसका इस्तेमाल करना सही है या गलत है, तो बता दूं कि अगर इसका उपयोग शरीअत के दायरे में रहते हुए किया जाए तो यह जायज़ है. क्रेडिट कार्ड का असल उसूल यह है कि जो बैलेंस या रकम इस्तेमाल की जा रही है, उसकी अदायगी हर महीने समय पर कर दी जाए, ताकि उस पर ब्याज न चढ़े.
इस्लाम में ब्याज का लेना और देना दोनों हराम हैं
मौलाना इफराहीम हुसैन ने कहा कि इस्लाम में ब्याज का लेना और देना दोनों हराम हैं, क्योंकि यह शरीअत के खिलाफ है और इसके कई नुकसान हैं. अगर कोई व्यक्ति क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल इस तरह करता है कि हर महीने पूरा भुगतान कर देता है और किसी तरह का ब्याज नहीं लगता तो इसमें कोई मुमानियत नहीं है यानी यह जायज़ है.
उन्होंने यह भी कहा कि आजकल बहुत से लोग क्रेडिट कार्ड का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और समय पर भुगतान नहीं कर पाते, जिससे उन पर ब्याज चढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में यह नाजायज़ और हराम हो जाता है. ब्याज की यह लानत कई परेशानियां पैदा करती है और कार्ड धारक को आर्थिक मुश्किलों में डाल देती है.
ब्याज देना और लेना दोनों गलत
मौलाना ने सलाह देते हुए कहा कि क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए. अगर ब्याज से बचते हुए और समय पर अदायगी की जाए, तो इसका इस्तेमाल शरीअत के मुताबिक सही है. लेकिन अगर इसमें ब्याज शामिल हो जाए, तो यह इस्लामी दृष्टि से गलत और नाजायज़ माना जाएगा यानी कि फिर इस लिहाजा और तरीके से क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करना हराम होगा.