देश का वो इकलौता गांव, जहां बिना मर्दों के महिलाएं पैदा करती हैं बच्चे! जानें सच्चाई – women in this ghazipur village have children without husband know reason behind it shocking facts

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गाजीपुर. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के भदौरा ब्लॉक के पास एक गांव बसा है जिनका नाम है बसुका. यह गांव इतना बदनाम है कि यहां के लोग इसका नाम लेने से कतराते हैं. सोशल मीडिया और यूट्यूब पर कई वीडियो आपको मिल जाएंगे, जिनमें दावा किया जाता है कि यहां पर महिलाएं बिना मर्द बच्चों को जन्म देती हैं. इस गांव में लोग रिश्ता करने से भी बचते हैं.

दरअसल, गांव के बाहर के बाहरी हिस्से में एक बस्ती है, जो तवायफों के लिए विख्यात रही है. आज भी यहां जिस्मफरोशी का धंधा होता है. बनारस से लेकर पटना तक यह गांव बदनाम है. शायद यह देश का इकलौता गांव ने जहां की कई महिलाएं कैमरे के सामने आईं. खुले तौर पर जिस्मफरोशी की बात स्वीकार की. गांव की एक 300 साल पुरानी कला ही इसके लिए अभिशाप बन गई है. बसुका गांव के बाहर तवायफें रहती हैं. गांव में आजादी से पहले मुजरे का चलन था. मुजरा बंद हुआ तो इस कला से जुड़ी महिलाओं को वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया गया. अभी भी ऑर्केस्ट्रा में काम करने के लिए ‘नाचनेवाली लड़कियां’ यहीं से बिहार के कई जिलों में जाती हैं.

दो साल पहले यह गांव अचानक चर्चा में तब आया था जब यहां की कई तवायफों ने वेश्यावृत्ति के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई. वो कैमरे के सामने आईं और अपनी पीड़ा जाहिर की थी. खुलकर स्वीकार किया कि गांव में जिस्मफरोशी होती है. दूसरी ओर कई लोग तवायफों के समर्थन में उतर आए. उनका कहना था वेश्यावृत्ति का आरोप गलत है. काफी दिन तक दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला.

बताया जाता है कि गांव में सिर्फ 15-20 परिवार ऐसे हैं जो मुजरा कला से जुड़े हैं. इनके घरों में आज भी महफिल सजती है. इसी बीच कुछ वीडियो भी वायरल हुए जिसमें मुजरा करते हुए महिलाएं नाचते हुए नजर आईं.

वेश्यावृत्ति से जुड़ी तबस्सुम (बदला हुआ नाम) गांव में चल रहे मुजरा को बंद करवाना चाहती हैं. वो कहती है, ‘मुझे 13 साल की उम्र में इस लाइन में उतार दिया गया. जैसे-जैसे बड़ी हुई तो समझ आई कि यह गलत है. 10-12 की लड़कियों को यहां दवा देकर जवान कर दिया जाता है. मेरी भी एक नाजायज औलाद है. जब स्कूल में उसका नाम लिखाने पहुंची तो भाई का नाम पिता की जगह लिखवाना पड़ा. मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं कितने गंदे धंधे में हूं.  मैंने यह काम छोड़ दिया है. मेरे पति मुंबई में ऑटो चलाते हैं. मेरी मजबूरी देखकर उन्होंने शादी की. मैं बहुत अहसानमंद हूं.’

एक और चौंकाने वाला सच यह है कि वेश्यावृत्ति से जुड़ी कुछ महिलाएं अमीरी की जिंदगी जी रही हैं तो कई दो जून की रोटी नहीं जुटा पा रही हैं. कुछ ने अपनी बेटियों को दुबई और अरब देशों में भेज दिया है. अब उनके घर पक्के बन गए हैं. घर में एसी है, सुख-सुविधाएं हैं,’

तबस्सुम इस सच्चाई को साफगोई से बताते हुए कहती है, ‘मैंने 29 लाख का फ्लैट बनारस में लिया है. गांव में जमीन खरीदी है. मकान बनवाया है. मैं चाहती हूं जो मेरे साथ हुआ, वो किसी के साथ न हो.’

मुजरा कला से जुड़े पक्ष का कहना था कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं, उनमें सच्चाई नहीं है. तवायफ के कोठे पर तबला बजाने वाला मोहम्मद शाहिद का कहना है, ‘मेरे दादा-परदादा और पिता तवायफों के कोठों पर तबला बजाते थे. मैं भी तबलावादक हूं. मेरा भाई भी हारमोनियम बजाता है. वेश्यावृत्ति का आरोप गलत है. हम गा-बजाकर अपना गुजारा करते हैं.’ वह अपने बचाव में तर्क देते हैं, ‘जो महिलाएं अश्लील गीत नहीं गा सकतीं वो वेश्यावृत्ति कैसे कर सकती हैं.’

कैमरे पर सामने आई तवायफ गुड़िया का कहना है, ‘हम लोग वेश्यावृत्ति नहीं करते. हम तो ठुमरी, सोहर और अन्य कलाओं से लोगों का मनोरंजन करते हैं. तवायफ और वेश्या में अंतर होता है. तवायफ लोगों को समझा-बुझाकर घर लौटा देती है. वो किसी का घर नहीं तोड़ती. हम तो सिर्फ मनोरंजन करते हैं. पूरा विवाद हमारे गांव के सरपंच के कारण उत्पन्न हुआ है. उनका परिवार भी इसी पेशे से जुड़ा रहा है. अब वो इस काम को बंद करने की धमकी दे रहे हैं.’

हालांकि पूरे मामले में प्रशासन ने अपना दखल लिया. पुलिस प्रशासन ने तवायफों को अपना काम सम्मानपूर्वक करने की इजाजत दे दी.

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