एनसीआर में लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण अब लोगों की सेहत को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. गाजियाबाद की हवा में जहर घुल चुका है जिसका सबसे बड़ा खतरा बच्चों, बुजुर्गों, और महिलाओं के साथ गर्भवती महिलाओं पर दिख रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के चरम दिनों में गर्भवती महिलाएं सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक जोखिम में होती हैं और उन्हें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है.
जिला महिला अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. माला शर्मा बताती हैं कि प्रदूषण के कारण हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. जब गर्भवती महिला ऐसी हवा में सांस लेती है तो उसके शरीर को पूरी मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती. यह कमी सीधे मां और गर्भ में पल रहे बच्चे पर असर डालती है. फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और बच्चे की ग्रोथ प्रभावित होती है. कई बार गर्भ में ही ऑक्सीजन की कमी से बच्चा धीमी गति से विकसित होता है जिससे भविष्य में सांस संबंधी समस्याएं, अस्थमा, और फेफड़ों की कमजोरी जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं.
प्रदूषण से बढ़ सकता है प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा
डॉ. माला के अनुसार, भारी और दूषित हवा गर्भवती महिला के शरीर में थकान, सिरदर्द, खांसी, सीने में जलन, और कमजोरी जैसे लक्षण पैदा कर सकती है. अत्यधिक प्रदूषण की स्थिति में प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है. प्रीमैच्योर बच्चों के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते जिससे जन्म के बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. इसलिए प्रदूषण का मौसम गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है.
सुबह की सैर से भी बचने की सलाह, प्रदूषण के दिनों में दिनचर्या बदलना जरूरी
आम दिनों में सुबह की सैर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानी जाती है, लेकिन प्रदूषण के दिनों में गर्भवती महिलाओं को इससे भी बचना चाहिए. सुबह के समय हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है. ऐसे में बाहर जाना गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर कहती हैं कि इस मौसम में महिलाओं को जहां तक संभव हो घर के अंदर ही रहना चाहिए और गैरजरूरी बाहर निकलने से बचना चाहिए.
एन 95 मास्क और एयर प्यूरीफायर का उपयोग जरूरी
यदि किसी कारणवश बाहर जाना पड़े तो गर्भवती महिलाओं को केवल एन 95 या अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क पहनकर ही बाहर निकलना चाहिए. डॉ. माला कहती हैं कि घर के अंदर की हवा भी साफ रहनी चाहिए. कमरे में उचित वेंटिलेशन रखना, एयर प्यूरीफायर का उपयोग करना, या पौधों के माध्यम से इनडोर एयर क्वालिटी सुधारना बेहद जरूरी है. इससे घर के अंदर प्रदूषण का प्रभाव कम होता है और गर्भवती महिला को राहत मिलती है.
सही आहार और पानी की पर्याप्त मात्रा बेहद जरूरी
डॉ. माला के अनुसार, गर्भवती महिलाओं का आहार इस मौसम में बेहद अहम भूमिका निभाता है. हाई प्रोटीन और बैलेंस्ड डाइट लेने से शरीर मजबूत रहता है और प्रदूषण का असर कम होता है. शरीर में पानी की कमी से कमजोरी बढ़ती है इसलिए रोज 8 से 10 गिलास पानी पीना जरूरी है. महिलाओं को रोज कम से कम दो घंटे आराम करना चाहिए. तनाव, थकान, और अनियमित दिनचर्या से बचना चाहिए.
कब लें डॉक्टर की सलाह
यदि किसी गर्भवती महिला को सांस लेने में दिक्कत, तेज खांसी, सीने में भारीपन, थकान, या बार-बार चक्कर आने जैसी समस्या हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. डॉ. माला का कहना है कि थोड़ी सी सतर्कता, सही समय पर लिए गए कदम, और जरूरी सावधानियां गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों को प्रदूषण के गंभीर प्रभावों से बचा सकती हैं.

