वाराणसी: बनारस का दालमंडी एक ऐसी जगह है जो इतिहास के पन्नों में एक अलग पहचान रखती है। यह जगह भले ही आज पूर्वांचल का बड़ा मार्केट बना हुआ है, लेकिन कभी इन गलियों में तवायफों की महफिलें सजा करती थीं। गीत-संगीत और घुंघरुओं की आवाज यहां की पहचान थी। इस जगह पर कई ऐसी तवायफें भी थीं जिन्हें देखने के लिए लोग यहां जुटते थे। इस जगह को अदा, अदब और तहजीब के लिए जाना जाता था।
संजय दत्त की नानी जद्दनबाई की महफ़िल भी बनारस के इसी दालमंडी में सजती थीं। उनके महफिल में राजा महाराजा शामिल होते थे। उनके ठुमरी गायन और नृत्य के कद्रदान पूरे देशभर में थे। जद्दनबाई की मां दलिपबाई भी तवायफ थीं। जद्दनबाई को अपनी मां से ही विरासत में नृत्य-संगीत मिला था, जिसे उन्होंने आगे भी बढ़ाया।
बनारस में हुआ था जन्म वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु राज पांडेय ने बताया कि जद्दनबाई का जन्म 1892 में बनारस में हुआ था। उनकी बेटी का नाम नरगिस था, जो मशहूर अभिनेत्री भी थीं। जद्दनबाई गायिका, नर्तकी, अभिनेत्री के साथ वो महिला फ़िल्म निर्माताओं में से एक थीं। उनका पहला सम्बंध बनारस के एक रईस जगन्नाथ प्रसाद खन्ना के साथ था। बाद में उनकी शादी उस्ताद इरशाद मीर खान से हुई। इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी मोहनचंद उत्तमचन्द त्यागी से किया। जद्दनबाई और मोहनचंद की बेटी ही नरगिस थी।
बिहार के गया से भी रहा है सम्बंध जद्दनबाई वाराणसी के दालमंडी के अलावा बिहार के गया, प्रयागराज, कोलकाता और मुम्बई भी रही हैं। बिहार के गया में आज भी उनकी हवेली मौजूद है, जो काफी जर्जर है।
नहीं होता था देह व्यापार दालमंडी के तवायफों का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। ऐसा कहा जाता है कि यहां कोठों पर कोलकाता और दूसरे शहर जैसे देह व्यापार का काम नहीं होता था, बल्कि यहां लोग तहजीब को देखने और उसे सीखने के लिए आया करते थे।

