लखीमपुर खीरी में केले की खेती से किसानों को भारी घाटा, पंजाब में आई बाढ़ के कारण व्यापारी नहीं आ रहे
उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी जिला ‘चीनी का कटोरा’ के नाम से जाना जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में किसानों ने पारंपरिक गन्ने की खेती से हटकर बड़े पैमाने पर केले की खेती अपनाई है. कम लागत और ज्यादा मुनाफे की वजह से यह खेती तेजी से लोकप्रिय हुई है. उद्यान विभाग भी किसानों को अनुदान देकर केले की खेती को बढ़ावा दे रहा है. खीरी जिले के मोहम्मदी, धौरहरा, निघासन और पलिया तहसील क्षेत्र के किसान बड़े स्तर पर केले की फसल उगाते हैं. सामान्यतः 13 से 14 महीने में तैयार होने वाली इस फसल की देशभर में अच्छी मांग रहती है. लखीमपुर का केला न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि विदेश (ऑस्ट्रेलिया) तक भेजा जाता रहा है. लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं. पंजाब और आसपास के राज्यों में आई बाढ़ के कारण बाहरी व्यापारी जिले में नहीं पहुंच पा रहे हैं. इस वजह से केला अब सिर्फ उत्तर प्रदेश के जिलों में ही खपाया जा रहा है. जिसके चलते किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे.
मोहम्मदी तहसील क्षेत्र के अलीनगर निवासी किसान नरेंद्र कुमार वर्मा बताते हैं कि वे करीब चार एकड़ में केले की खेती करते हैं. बीते वर्षों में उन्हें लाखों का मुनाफा हुआ, लेकिन इस बार बाहरी व्यापारी न आने से उनकी फसल का दाम नहीं मिल रहा. वर्मा के अनुसार, पिछले वर्ष केला 2200 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था, जबकि इस बार व्यापारी मात्र 600 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दे रहे हैं. लागत ही 800 रुपये प्रति क्विंटल आती है, ऐसे में हमें भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो केले की खेती करना मुश्किल हो जाएगा. उन्हें सरकार से मदद और उचित बाजार उपलब्ध कराने की उम्मीद है.