world preeclampsia day 2025 what is this serious pregnancy complication know its symptoms risks awareness prevention tips | प्रेगनेंसी का ‘साइलेंट किलर’, मां और बच्चे की जा सकती है जान; एक्सपर्ट से जानें लक्षण और बचाव

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world preeclampsia day 2025 what is this serious pregnancy complication know its symptoms risks awareness prevention tips | प्रेगनेंसी का 'साइलेंट किलर', मां और बच्चे की जा सकती है जान; एक्सपर्ट से जानें लक्षण और बचाव



World Pre-Eclampsia Day 2025: हर साल 22 मई को वर्ल्ड प्री-एक्लेम्पसिया डे के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली एक गंभीर कंडीशन प्री-एक्लेम्पसिया के प्रति अवेयरनेस फैलाना है. इसी कड़ी में न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने नोएडा स्थित सीएचसी भंगेल की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ. मीरा पाठक से खास बातचीत की. डॉ. पाठक ने प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण, कारण और बचाव के उपाय बताए.
 
क्या है प्री-एक्लेम्पसिया?डॉ. पाठक ने बताया कि प्री-एक्लेम्पसिया एक प्रेगनेंसी से जुड़ा डिसऑर्डर है, जो लगभग पांच से आठ प्रतिशत प्रेग्नेंट महिलाओं में देखने को मिलता है. इसे ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसके लक्षण बहुत कम होते हैं और तब तक सामने नहीं आते जब तक जानलेवा नहीं बन जाते. उन्होंने कहा कि आमतौर पर प्रेगनेंसी के 20 हफ्ते के बाद अगर महिला का ब्लड प्रेशर 140/90 से ऊपर चला जाता है, शरीर में सूजन आ जाती है और यूरिन में प्रोटीन बढ़ जाती है, तो इसे प्री-एक्लेम्पसिया माना जाता है. इन तीनों में से कोई भी दो लक्षण मौजूद हों, तो तुरंत सतर्क हो जाने की जरूरी होती है.
 
प्री-एक्लेम्पसिया के कारणडॉक्टर ने बताया कि प्री-एक्लेम्पसिया का बड़ा कारण प्लेसेंटा में होने वाली अब्नोर्मलिटी होती है. इसके रिस्क फैक्ट्स में कम उम्र (18 साल से कम), ज्यादा उम्र (40 साल से अधिक), पहली प्रेगनेंसी, पहले से हाईपरटेंशन, हार्ट, लंग्स, डायबिटीज या थायरॉइड जैसी बीमारियां, पहले की प्रेगनेंसी में प्री-एक्लेम्पसिया होना, ट्विन या मोलर प्रेगनेंसी, और ज्यादा वेट होना शामिल हैं.
 
प्री-एक्लेम्पसिया की डायग्नोसिसडायग्नोसिस के बारे में बात करते हुए डॉ. पाठक ने बताया कि ज्यादातर महिलाओं में कोई खास लक्षण नहीं होते, लेकिन समय-समय पर टेस्ट के दौरान हाई बीपी (140/90 या उससे ऊपर) पाया जाता है. इसके अन्य लक्षणों में सिरदर्द, धुंधला या डबल विजन, हाथ-पैर में सूजन, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, उल्टी, एक महीने में चार किलोग्राम से अधिक वजन बढ़ना, पेशाब में झाग या मात्रा में कमी शामिल हैं. गंभीर मामलों में मरीज को दौरे (फिट्स) आ सकते हैं या वह कोमा में जा सकती है.
 
प्री-एक्लेम्पसिया की कॉम्प्लिकेशन्सप्री-एक्लेम्पसिया की कॉम्प्लिकेशन्स की बात करें तो डॉ. पाठक ने बताया कि अनकंट्रोल्ड बीपी से ब्रेन स्ट्रोक, दौरे, HELLP (एचईएलएलपी) सिंड्रोम (लीवर पर असर, ब्लीडिंग टेंडेंसी बढ़ना, प्लेटलेट काउंट घटना), हार्ट फेल्योर, किडनी फेल्योर और कोमा तक की स्थिति हो सकती है. फीटस के लिए यह स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है – जैसे मिसकैरेज, गर्भ में बच्चे की मृत्यु, आईयूजीआर (अंतर्गर्भाशयी विकास मंदता), अमनियोटिक फ्लूइड की कमी और प्रीमैच्योर डिलीवरी.
 
प्री-एक्लेम्पसिया की ट्रीटमेंटउन्होंने बताया कि इस स्थिति की ट्रीटमेंट खासतौर पर ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और प्रोटीन की टेस्ट से शुरू होता है. साथ ही लाइफस्टाइल में बदलाव जैसे मॉर्निंग वॉक, व्यायाम, योगा, स्ट्रेस कम करने से फायदा होता है. प्रोसेस्ड फूड, चीनी, नमक और ऑयली खाने से परहेज की सलाह दी जाती है. जरूरत पड़े तो ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने की दवाएं भी दी जाती हैं. लेकिन इसका डेफिनिटिव ट्रीटमेंट डिलीवरी ही होती है. अगर महिला की स्थिति नॉर्मल है और कोई ऑर्गन डैमेज नहीं है, तो प्रेगनेंसी को 37 हफ्तों तक सेफ ले जाया जाता है और फिर डिलीवरी करवाई जाती है. चाहे वह नार्मल हो या सीजेरियन. लेकिन अगर मरीज की हालत बिगड़ती है और ब्लड प्रेशर कंट्रोल नहीं होता, ऑर्गन्स पर असर दिखने लगता है या मरीज को दौरे आने लगते हैं तो डॉक्टर मां की जान बचाने के लिए तुरंत प्रीमैच्योर डिलीवरी करते हैं.
 
डिलीवरी के बाद प्री-एक्लेम्पसिया डॉ. पाठक ने कहा कि कभी-कभी प्री-एक्लेम्पसिया की स्थिति डिलीवरी के बाद भी बन सकती है. नॉर्मली डिलीवरी के 48 घंटे के अंदर बीपी बढ़ सकता है और यह स्थिति छह हफ्ते तक बनी रह सकती है. ऐसे मामलों में फ्यूचर में हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी होने का खतरा बना रहता है.–आईएएनएस
 
Disclaimerयहां दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.



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