रिपोर्ट: अभिषेक जायसवाल
वाराणसी. भोले की नगरी काशी को मंदिरों का शहर कहा जाता है. भगवान शंकर के इस धाम में सभी देवी देवता विराजमान हैं और यहां उनका मंदिर है. देवी देवताओं के इन मंदिरों के बीच बाबा विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) के दरबार के करीब त्रिजटा नाम की राक्षसी का मंदिर भी है. इस मंदिर में साल में सिर्फ एक दिन भक्तों की भीड़ होती है. धर्म नगरी काशी में राक्षसी की पूजा के इस विधान का सीधा कनेक्शन त्रेतायुग से है.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कार्तिक मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है. इस पूरे महीने में भगवान विष्णु संग माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए भक्त काशी में एक महीने तक गंगा स्नान करते हैं. एक महीने स्नान के बाद कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा राक्षसी के दर्शन और पूजन के बाद ही भक्तों की ये तपस्या पूरी होती है.
माता सीता ने दिया था वरदानमंदिर के पुजारी राजा तिवारी ने बताया, ‘माता सीता ने त्रिजटा को वरदान दिया था कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उन्हें भी देवी स्वरूप में पूजा जाएगा.’ बता दें कि त्रेतायुग में जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तो उन्हें अशोक वाटिका में उन्हें रखा था. अशोक वाटिका में त्रिजटा नाम की राक्षसी माता सीता की देखभाल करती थी. रावण के वध के बाद जब माता सीता वापस लौट रही थीं, तो उन्होंने त्रिजटा को काशी में विराजमान होने की बात कहकर उन्हें एक दिन की देवी का वरदान दिया था. बस तब से उनकी पूजा होती चली आ रही है.
चढ़ता है मूली और बैंगनधार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो भी कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन त्रिजटा राक्षसी की पूजा करता है. त्रिजटा हमेशा उनकी रक्षा करती हैं. यही वजह है कि यहां साल में एक दिन भक्तों की भीड़ लगी होती है और भक्त मूली-बैंगन का भोग लगाकर विशेष रूप से उनकी पूजा करते हैं. (नोट: यह खबर मान्यताओं पर आधारित है. न्यूज़18 इसकी पुष्टि नहीं करता.)ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Kashi Vishwanath Dham, Lord Ram, Sita, Varanasi Ganga Aarti, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : November 09, 2022, 17:01 IST
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