सनन्दन उपाध्याय/बलिया: बलिया की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है. इस धरती पर बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने तपस्या किया है. इसी पावन धरती पर महर्षि भृगु मुनि को श्रापों से मुक्ति मिली थी. पूरे विश्व में यह भूमि महर्षि भृगु की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है. इसका संबंध पद्मपुराण में उल्लेखित भगवान विष्णु एवं भृगु की कथा से जोड़ा जाता है.

त्रिदेव परीक्षण के दौरान, क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात, का भृगु को घट गए जो प्रभु को मारी लात. पद्म पुराण के उपसंहार खंड के अनुसार जब भृगु जी ब्रह्मा और शिव के परीक्षण के बाद विष्णु भगवान के पास पहुंचे तो वहां की स्थिति देख अपने पैरों से विष्णु के छाती पर प्रहार किया. लेकिन विष्णु भगवान क्रोधित न होकर स्वयं उनके पैरों का पूजा किया. उस दौरान भृगु जी ने विष्णु को सर्वश्रेष्ठ देवता तो घोषित कर दिया. लेकिन लक्ष्मी जी ने भृगु मुनि को श्राप भी दे दिया. अंततः इसी पवित्र धरती से इनको मुक्ति भी मिली. ये मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा मास में जो गंगा स्नान कर भृगु मुनि के चरणों पर जल चढ़ाता है तो उसके जन्मों जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं.

महर्षि भृगु की तपोभूमि बलिया

आचार्य पं. बालेश्वर गिरी बताते हैं कि इसी पवित्र धरती पर भृगु मुनि ने अपने श्रापों का प्रायश्चित किया. यहीं पर गंगा नदी के किनारे उन्होंने तपस्या किया था. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा मास में जो गंगा स्नान करके भृगु मुनि के चरणों पर जल चढ़ता है उसके जन्मों जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस स्थान को विमुक्ति तीर्थ के नाम से भी जानते हैं. यह तीर्थ ही सभी पापों से मुक्ति देने वाला होता है.

ये है बलिया की धरती का महत्व

इस जनपद की धरती इतना पवित्र है की जब महर्षि भृगु मुनि को त्रिदेव परीक्षण करने को मिला तो उस दौरान उसने विष्णु भगवान की छाती पर अपने पैरों से प्रहार किया. जब विष्णु भगवान की आंख खुली तो उन्होंने भृगु मुनि के चरणों का पूजा करते हुए कहा कि आप के चरणों में कहीं चोट तो नहीं आई. इस दौरान भृगु मुनि ने विष्णु भगवान को तीनों देवताओं में से सर्वश्रेष्ठ तो घोषित कर दिया. लेकिन माता लक्ष्मी ने इन्हें श्राप भी दे दिया. माता लक्ष्मी ने कहा कि आपने विष्णु को लात नहीं मारा आपने जिस स्थान पर लात मारा उस वक्त वहा मेरा निवास था अतः चोट मुझे लगी है.

इस श्राप के प्रायश्चित के लिए मरिची ऋषि ने भृगु मुनि को एक सूखा बांस देकर प्रायश्चित के लिए भेज दिया. उन्होंने कहा कि इस बांस को तुम लेकर चलते जाओ जहां इसमें कोपले निकल जाए समझ लेना कि तुम्हारा वही प्रायश्चित होगा और उस सूखे बांस में कोपले इसी पवित्र धरती पर निकल गया और फिर भृगु मुनि ने यही गंगा नदी के किनारे घोर तपस्या किया और अपने श्राप से मुक्ति पाई.

सभी को मिल सकती है इस पावन भूमि पर मुक्ति

पंडित कुश कुमार शास्त्री की माने तो इस बालिया के पवित्र भूमि पर जिस प्रकार से भृगु मुनि को श्राप से मुक्ति मिली. उसी प्रकार हर किसी को जन्मो जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल सकती है. मान्यता है कि कार्तिक मास में जो कोई भी गंगा स्नान करके महर्षि भृगु मुनि के चरणों पर जल चढ़ाता है उसके जन्मो जन्मांतर के पाप धुल जाते है.

इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि यह बिल्कुल सत्य बात है कि कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर जो कोई भी गंगा स्नान करता है उसके जन्मों जन्मांतर के पाप दूर हो जाते है. क्योंकि पद्म पुराण के उपसंहार खंड के अनुसार भृगु मुनि को भी इसी पावन धरती पर श्रापो से मुक्ति मिली थी. यह है बलिया के पावन भूमि की कहानी. आज भी कार्तिक पूर्णिमा के पवन अवसर पर इस मुक्ति के साधन को अपनाने के लिए देश के कोने-कोने से भारी संख्या में श्रद्धालु इस पवित्र भूमि पर आते हैं.
.Tags: Hindi news, Local18, Religion 18, UP newsFIRST PUBLISHED : October 22, 2023, 14:03 IST



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