यहां फूल नहीं, नाग देवता को चढ़ती है प्याज! आस्था ऐसी कि हर मुराद हो जाती है पूरी, जानिए मान्यताएं

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फूल नहीं, नाग देवता को चढ़ती है प्याज! आस्था ऐसी कि हर मुराद हो जाती है पूरी

रामपुर: उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले का एक छोटा सा गांव “ककरोआ” इन दिनों आस्था और रहस्य का बड़ा केंद्र बना हुआ है. यहां एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ और नाग देवता की पूजा होती है, लेकिन चढ़ावे में फूल-माला की जगह प्याज चढ़ाई जाती है. जी हां, आपने सही सुना! इस मंदिर की परंपरा ही कुछ ऐसी है, जो इसे बाकी सभी मंदिरों से अलग बनाती है.

गांववालों के अनुसार, यह मंदिर अंग्रेजों के जमाने का है और इसे “नाग देवता की मड़ी” के नाम से जाना जाता है. यहां रोजाना दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और नाग देवता के दर्शन करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं. खास बात ये है कि यहां आज भी दो नाग एक साथ जोड़े में प्रकट होते हैं, और फिर कुछ पलों में ही गायब भी हो जाते हैं. यह चमत्कार अब सिर्फ गांव की बात नहीं रह गई, बल्कि दूसरे शहरों तक इसकी ख्याति फैल चुकी है.

सभी मन्नत होती है पूरी
गांव के बुजुर्ग नरेश नाथ और मंदिर के पुजारी राजाराम बताते हैं कि मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है और नाग देवता उसी स्थान की रक्षा करते हैं. सालों से यह मान्यता है कि यहां जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उसकी हर कामना पूरी होती है.

राख को शरीर पर लगाने से ठीक हो जाते हैं चर्म रोगमंदिर में सबसे ज्यादा आस्था उन लोगों की है, जो त्वचा संबंधी रोग, फोड़े-फुंसी या अन्य चर्म रोगों से परेशान रहते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर की मड़ी की राख को शरीर पर लगाने से चमत्कारिक रूप से आराम मिल जाता है. न कोई डॉक्टर, न कोई दवा, सिर्फ नाग देवता की कृपा ही यहां लोगों की सबसे बड़ी उम्मीद बन गई है.

दूर- दूर से आते हैं भक्त
यहां दिल्ली, मुंबई, मुरादाबाद, बरेली, मिलक और शाहबाद जैसे शहरों से भक्त पहुंचते हैं. कोई नौकरी लगने की मन्नत मांगता है तो कोई संतान या शादी को लेकर दर्शन करने आता है. इस मंदिर का श्रावण मास और नाग पंचमी के मौके पर विशेष महत्व होता है. इन खास दिनों में मंदिर परिसर में मेले जैसा माहौल हो जाता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं.

मंदिर के पुजारी ने दी प्रतिक्रियामंदिर के पुजारी कहते हैं, “यह सिर्फ मंदिर नहीं, लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है. यहां किसी को रोका नहीं जाता. जो आता है, वो खाली नहीं लौटता.”

इतना सब होते हुए भी प्रशासन या पर्यटन विभाग की ओर से इस स्थल को प्रचारित करने या सुविधाएं बढ़ाने की कोई कोशिश अब तक नहीं हुई है, जबकि यह जगह धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकती है.

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