World no tobacco day in India 1 in 3 oral cancer patient do not survive 5 years | तम्बाकू बन रहा है मौत का सौदागर! भारत में मुंह के कैंसर से हर तीसरा मरीज 5 साल के अंदर तोड़ देता है दम

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World no tobacco day in India 1 in 3 oral cancer patient do not survive 5 years | तम्बाकू बन रहा है मौत का सौदागर! भारत में मुंह के कैंसर से हर तीसरा मरीज 5 साल के अंदर तोड़ देता है दम



हर साल 31 मई को ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन भारत में तम्बाकू से होने वाली मौतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. एक नई रिसर्च ने इस खौफनाक सच्चाई को उजागर किया है कि भारत में मुंह के कैंसर से जूझ रहे हर तीन में से एक मरीज पांच साल के अंदर दम तोड़ देता है. यह खुलासा जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित देश के अब तक के सबसे बड़े अध्ययन में हुआ है, जिसमें 14,000 से ज्यादा मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया.
स्टडी के मुताबिक, भारत में मुंह के कैंसर के मरीजों की औसत पांच वर्षीय जीवित रहने की दर सिर्फ 37.2% है. यानी दो-तिहाई मरीज पांच साल भी नहीं जी पाते. ये आंकड़े तब और डरावने हो जाते हैं जब यह सामने आता है कि भारत में हर साल मुंह के कैंसर के लगभग 1.4 लाख नए केस सामने आते हैं, जिनमें से करीब 80,000 की मौत हो जाती है.
मुंह के कैंसर का सबसे बड़ा कारणभारत में मुंह का कैंसर सबसे ज्यादा तम्बाकू के कारण होता है खासकर बिना धुएं वाले तम्बाकू उत्पाद जैसे गुटखा, खैनी और पान मसाला. तम्बाकू का सेवन होंठ, जीभ, मसूड़ों और तालू के कैंसर की वजह बनता है. डॉक्टरों के अनुसार, जब गुटखा या खैनी होंठों के नीचे या जीभ के नीचे रखा जाता है, तो ये धीरे-धीरे वहां पर सेल्स को नुकसान पहुंचाता है, जो कैंसर का रूप ले सकता है.
इलाज में देरी और क्षेत्रीय असमानता भी जिम्मेदारस्टडी में सामने आया कि कैंसर का जल्दी पता चलने पर पांच साल की जीवित रहने की संभावना 70% से ज्यादा होती है, लेकिन अगर बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों में फैल चुकी हो तो यह दर सिर्फ 9% रह जाती है. शहरी इलाकों में पांच साल की जीवित रहने की दर 48.5% है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह घटकर 34.1% रह जाती है. मणिपुर जैसे राज्यों में यह दर सिर्फ 20.9% है, जबकि अहमदाबाद जैसे शहरों में यह 58.4% तक पहुंच जाती है.
नीति और जागरूकता की कमी से बढ़ रही है समस्याभारत में मुंह के कैंसर की बढ़ती संख्या के बावजूद स्क्रीनिंग और इलाज की पहुंच बेहद सीमित है. नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में सिर्फ 2% वयस्कों की ही कभी ओरल कैंसर के लिए जांच हुई है. विज्ञापन की आड़ में गुटखा ब्रांड्स का प्रमोशन और सेलिब्रिटीज की भागीदारी भी इस संकट को बढ़ा रही है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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