World Hepatitis Day: साल 2025 की थीम है: ‘हेपेटाइटिस: लेट्स ब्रेक इट डाउन’, अब वक्त आ गया है कि हेपेटाइटिस से जुड़ी हर बाधा को तोड़ा जाए. यह एक ग्लोबल अपील है कि हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए अब हमें सतही नहीं, जमीनी स्तर पर काम करना होगा. WHO का लक्ष्य है कि 2030 तक हेपेटाइटिस को पब्लिक हेल्थ क्राइसिस की लिस्ट से बाहर किया जाए. दुनिया भर में करोड़ों लोग हेपेटाइटिस ‘बी’ या ‘सी’ के साथ जी रहे हैं.
13 लाख से ज्यादा लोगों की मौतहर साल यह बीमारी 13 लाख से ज्यादा लोगों की जान लेती है. यह संख्या HIV, मलेरिया और TB जैसी बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की संख्या से भी ज्यादा है. हेपेटाइटिस के बचाव और इलाज के उपाय मौजूद हैं. खासकर हेपेटाइटिस बी और सी लंबे समय तक शरीर पर असर करके लिवर सिरोसिस, लिवर फेल्योर और लिवर कैंसर जैसे जानलेवा मामलों की संख्या को बढ़ा देते हैं.
वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे क्यों मनाया जाता है?वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे डॉ. बारुच ब्लमबर्ग के जन्मदिवस पर मनाया जाता है. उन्होंने 1967 में हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज की और दो साल बाद इसकी पहली वैक्सीन बनाई. इस अद्भुत योगदान के लिए उन्हें 1976 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आज जब दुनिया उनकी इस खोज की बदौलत करोड़ों लोगों की जान बचा पा रही है, तो इस दिन को उनके सम्मान और प्रेरणा के रूप में देखा जाता है.
हेपेटाइटिस कितने तरह के होते हैं?हेपेटाइटिस कई प्रकार के होते हैं- ए, बी, सी, डी और ई. हेपेटाइटिस ए और ई दूषित भोजन और पानी से फैलते हैं, जबकि बी, सी और डी खून और शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क से. इन्फेक्टेड सिरिंज, अनप्रोटेक्टेड सेक्स और इन्फेक्टेड ब्लड से ट्रांसफ्यूजन जैसी स्थितियों में इसके फैलने के चांसेस ज्यादा होते हैं. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस बीमारी के कई मरीज सालों तक किसी लक्षण के बिना ही जीते रहते हैं. जब तक थकावट, बुखार, भूख की कमी, पेट दर्द, गहरे रंग का पेशाब और स्किन व आंखों का पीला होना जैसे लक्षण दिखते हैं, तब तक इंफेक्शन खतरनाक लेवल तक पहुंच चुका होता है. हेपेटाइटिस का समय पर पता चलना और इलाज मिलना बेहद जरूरी है, वरना यह लिवर को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है.
क्यों नहीं जांच करवा पाते हैं लोग?हालांकि, राहत की बात यह है कि हेपेटाइटिस ए और बी की वैक्सीन मौजूद है और हेपेटाइटिस सी अब पूरी तरह से इलाज योग्य है. लेकिन ज्यादातर लोग जांच कराने तक नहीं पहुंच पाते. जागरूकता, रिसोर्सेज की कमी और सोशल स्टिग्मा जैसी समस्याएं अभी भी इसकी रोकथाम में रोड़े अटका रही हैं.
भारत में हेपेटाइटिस की रोकथाम की चुनौती क्या है?भारत जैसे देश में, जहां ग्रामीण और वंचित समुदायों में हेल्थ सुविधाएं सीमित हैं, वहां इस बीमारी की रोकथाम एक बड़ी चुनौती है. WHO की रणनीति 2022–2030 के तहत लक्ष्य है कि 2030 तक नए इंफेक्शन्स को 90 फीसदी और मौतों को 65 फीसदी तक कम किया जाए. लेकिन अगर तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हेपेटाइटिस अकेले 2030 तक 95 लाख नए इंफेक्शन, 21 लाख लिवर कैंसर और 28 लाख मौतों की वजह बन सकता है. हेपेटाइटिस से लड़ाई लड़ना सिर्फ डॉक्टरों या सरकारों का काम नहीं है, यह हम सभी की जिम्मेदारी है. जागरूक बनें, दूसरों को जागरूक करें, समय पर जांच कराएं और जरूरत पड़ने पर इलाज शुरू करें.–आईएएनएस
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत या स्किन से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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