लखनऊ की एससी-एसटी स्पेशल कोर्ट ने फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाली महिला को दोषी करार दिया है. कोर्ट ने गुड्डी देवी को 1 साल 6 महीने की कैद की सजा सुनाई है. साथ ही आदेश दिया है कि जब तक किसी मामले में चार्जशीट न दाखिल हो, तब तक पीड़ित पक्ष को कोई राहत राशि न दी जाए.
कोर्ट ने साफ किया है कि राहत राशि पाने की प्रवृत्ति भी फर्जी मुकदमों को बढ़ावा देती है. अदालत ने यह भी कहा है कि दोषी गुड्डी देवी को यदि कोई राहत राशि दी गई है तो उसे तत्काल वापस लिया जाए.
गुड्डी देवी ने 6 नवंबर 2024 को लखनऊ के माल थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी. उन्होंने गांव के ही मथुरा प्रसाद, विनोद अवस्थी और अनूप अवस्थी पर मारपीट, धमकाने और एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में गंभीर आरोप लगाए थे. चूंकि मामला एससी-एसटी एक्ट से जुड़ा था, इसलिए इसकी विवेचना तत्कालीन एसीपी बीकेटी ने की थी.
विवेचना में खुला सच जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि आरोपित अनूप अवस्थी घटना के समय फैजुल्लागंज में मौजूद थे. वहीं, बाकी दोनों लोग भी मौके पर नहीं थे. जांच में साफ हो गया कि गुड्डी देवी ने जिस घटना का जिक्र किया है, वह हुई ही नहीं थी. विवेचक ने फाइनल रिपोर्ट लगाते हुए गुड्डी के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का परिवाद कोर्ट में दाखिल किया था.
पंचायत की राजनीति बनी वजह विवेचना में यह भी सामने आया कि पूरा विवाद ग्राम पंचायत की राजनीति से जुड़ा हुआ था. असल में ग्राम पंचायत की विकास निधि को लेकर गांव के दो पक्षों में लंबे समय से विवाद चल रहा था. इस दौरान मथुरा प्रसाद की पत्नी ग्राम प्रधान चुनी गई थीं, जो गुड्डी देवी के विरोधी गुट से थीं. बताया गया कि ग्राम प्रधान ने गुड्डी के पक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. इसके बाद दबाव बनाने की नीयत से गुड्डी देवी ने भी मथुरा प्रसाद व उनके परिजनों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत फर्जी एफआईआर दर्ज करा दी थी.
जांच में यह साजिश सामने आई और कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए दोषी महिला को कैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अपने आदेश की कॉपी लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर को भेजने का निर्देश दिया है.

