Indian Cricket Team Head Coach Gautam Gambhir: भारतीय क्रिकेट टीम के लिए टेस्ट में पिछले 12 महीने काफी कठिन रहे हैं. 2024 में टी20 वर्ल्ड कप जीतने के बाद राहुल द्रविड़ ने हेड कोच पद को छोड़ दिया था. उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था. उन्होंने पहले ही कह दिया था कि वह टूर्नामेंट के बाद हट जाएंगे. उनके बाद पूर्व ओपनर गौतम गंभीर को मुख्य कोच बनाया गया. गंभीर के कार्यकाल में टीम इंडिया ने वनडे और टी20 में शानदार प्रदर्शन किया. यहां तक कि इस साल चैंपियंस ट्रॉफी को भी जीत लिया. लिमिटेड ओवरों में तो भारत ने कमाल कर दिखाया, लेकिन टेस्ट में वह जादू नहीं दिखा. बांग्लादेश के खिलाफ सीरीज को छोड़ दें तो बाकी 3 सीरीज में टीम को जीत नहीं मिली. न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर पहली बार टेस्ट सीरीज हारने के बाद ऑस्ट्रेलिया में शिकस्त मिली और इंग्लैंड में ड्रॉ से संतोष करना पड़ा.
कोच पर उठ रहे सवाल
टीम इंडिया के औसत प्रदर्शन के कारण गंभीर सबके निशाने पर हैं. पिछले एक दशक से टेस्ट में चला आ रहा भारत का दबदबा समाप्त होने लगा है और फैंस इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. इस फॉर्मेट को सभी सबसे ज्यादा पसंद करते हैं और इसमें वह बदलाव की मांग कर रहे हैं. ऐसे में हम आपको वे 5 कारण बता रहे हैं जिस कारण गौतम गंभीर को टेस्ट में कोच पद से हटाया जा सकता है…
1. गंभीर के पास प्लान की कमी
गंभीर के पास टेस्ट क्रिकेट में लंबे समय के लिए प्लान की कमी साफ दिखती है. एक साल से वह कोच (India Head Coach) हैं, लेकिन अभी तक नंबर-3 की गुत्थी को नहीं सुलझा पाए हैं. कभी साई सुदर्शन तो कभी करुण नायर, कभी देवदत्त पडिक्कल तो कभी कोई और…भारतीय टीम ने नंबर-3 को म्यूजिकल चेयर बना दिया है. टेस्ट में यह सबसे अहम क्रम होता है, लेकिन यहां कुछ भी फिक्स नहीं है. अभिमन्यु ईश्वरन जैसे डोमेस्टिक क्रिकेट के अनुभवी बल्लेबाज सीरीज दर सीरीज बेंच पर ही बैठे हुए हैं. उन्हें डेब्यू का मौका ही नहीं मिला है. ओवल जीत के बाद भले ही गंभीर अपनी कुर्सी बचाने में सफल हो जाएं, लेकिन सवाल यह है कि वह कब तक टी20 या वनडे स्टाइल में टेस्ट टीम को चला पाएंगे.
2. 15 टेस्ट में सिर्फ 5 जीत
ओवल में जीत से गौतम गंभीर को जरूर कुछ समय मिल गया, लेकिन एक साल में उनका प्रदर्शन कुछ ज्यादा अच्छा नहीं रहा है. वह 15 टेस्ट मैचों में भारत के कोच रहे हैं और इसमें टीम इंडिया को सिर्फ 5 मैचों में जीत मिली. यहां तक कि 5 में से दो जीत तो बांग्लादेश के खिलाफ आई थी. घरेलू मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाफ हार ने सबसे बड़ा झटका दिया. उसके बाद ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो बार बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीतने वाली टीम इस बार सीरीज हारकर वापस लौटी.
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3. खराब टीम चयन और गेंदबाजों पर बोझ
इंग्लैंड में भारतीय तेज गेंदबाजों पर काम का बोझ किसी एक मैच तक सीमित नहीं था. पूरी सीरीज के दौरान टीम का चयन अजीब लग रहा था. हर मैच में टीम ने बल्लेबाजी पर बहुत अधिक जोर दिया. गंभीर ने लगातार कम से कम दो ऑलराउंडर खिलाए, जिसका मतलब था कि भारत के पास टेस्ट में सभी 20 विकेट लेने के लिए जरूरी गेंदबाजों की कमी थी. कुलदीप यादव को पूरी सीरीज के दौरान बेंच बिठाए रखना समझ से परे था. वह बैजबॉल की काट होते, लेकिन गंभीर ने उनके ऊपर भरोसा नहीं जताया. गंभीर के चयन फैसलों ने कप्तान शुभमन गिल के लिए भी मुश्किलें पैदा कीं. मैनचेस्टर में गिल को भारत के चौथे सीमर शार्दुल ठाकुर पर ज्यादा भरोसा नहीं था. पूरी सीरीज में उन्होंने अपने स्पिनरों पर कम भरोसा दिखाया, जिन्हें उनकी गेंदबाजी से ज्यादा उनकी बल्लेबाजी की गहराई के लिए चुना गया था.
4. गंभीर के रवैये पर सवाल
गंभीर के व्यवहार पर भी इस सीरीज के दौरान बार-बार सवाल उठाए गए. लीड्स में ऋषभ पंत के दो शतकों के बारे में पूछे जाने पर गंभीर एक रिपोर्टर पर भड़क गए और इसके बजाय शुभमन गिल की प्रशंसा करने की मांग की. उन्होंने पत्रकार को बीच में ही रोक दिया, यह कहते हुए कि गिल भारतीय टीम के असली लीडर थे. बाद में एजबेस्टन में गिल के दोहरे शतक के बाद गंभीर ने कप्तानी पर सवाल उठाने के लिए प्रेस पर फिर से हमला किया. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रेस ने कभी गिल पर कप्तान के रूप में सवाल उठाया था? नहीं. ऐसा नहीं हुआ है. गंभीर छोटे-छोटे सवालों पर भड़कते दिखे और ऐसा लगा कि टीम का माहौल काफी तनावपूर्ण है.
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5. टीम में लगातार बदलाव
भारत ने इंग्लैंड सीरीज के लिए एक बड़ा स्क्वाड चुना था, जिसमें वर्कलोड मैनेजमेंट और टीम के अनुभव की कमी को ध्यान में रखा गया था. इसके बावजूद टीम इंडिया एक स्थिर प्लेइंग-11 बनाए रखने में नाकाम रही. लगातार बदलाव किए गए. सीरीज से पहले इंग्लैंड लायंस के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करने वाले अंशुल कंबोज को भारत वापस भेज दिया और उनकी जगह हर्षित राणा को रखा गया. हर्षित ऑस्ट्रेलिया सीरीज, आईपीएल और इंग्लैंड लायंस के खिलाफ अनऔपचारिक टेस्ट मैचों में प्रभावी नहीं थे. जब इस फैसले की आलोचना हुई तो हर्षित को भारत भेज दिया गया और कहा गया कि वह सिर्फ कवर के तौर पर टीम के साथ थे.
इतना ही नहीं, अचानक से जब चोट संबंधी चिंताएं टीम में आईं तो अंशुल कंबोज को वापस बुला लिया गया और सीधे चौथे टेस्ट मैच में उतार दिया गया. इसके बाद जो हुआ उस पर किसी को भरोसा नहीं हुआ. कंबोज 125 किमी प्रति घंटा की स्पीड से गेंदबाजी कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वह थके हुए थे और इस टेस्ट के लिए तैयार नहीं थे. कंबोज को फिर पांचवें मैच में नहीं खिलाया गया. इन फैसलों को कोई नहीं समझ पाया.