Health

why do kids get asthma attacks after inhaler Research has revealed 3 new reasons | इनहेलर के बाद भी बच्चों में अस्थमा अटैक क्यों? रिसर्च में सामने आए 3 नए कारण



Asthma in Children: आजकल बच्चों में अस्थमा एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो उनकी सांस लेने की क्षमता को प्रभावित करता है. इलाज, जैसे इनहेलर या दवाइयों के बावजूद कई बार बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ जाती है. इसे अस्थमा फ्लेयर-अप कहा जाता है. अब वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि कुछ खास बायोलॉजिकल प्रोसेस शरीर में ऐसी सूजन को बढ़ा देती हैं, जो सामान्य इलाज से ठीक नहीं होती.
हाल ही में अमेरिका के शिकागो स्थित एन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च किया, जिसने अस्थमा की जटिलता को समझने में मदद की है और बेहतर इलाज की दिशा में नई राह खोल दी है.
बता दें कि अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों और सांस की नली में सूजन हो जाती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चों में अस्थमा के अलग-अलग कारण होते हैं, और इनमें सूजन के कई रास्ते सक्रिय रहते हैं. इनमें से एक प्रमुख तरीका है टाइप 2 इन्फ्लेमेशन, जो इओसिनोफिल्स नामक व्हाइट ब्लड कणों को बढ़ाता है, जिसके चलते फेफड़ों में सूजन आ जाती है और अस्थमा के लक्षण गंभीर हो जाते हैं.
वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि दवाइयां जो खासकर टाइप 2 सूजन को कम करती हैं, इसके बावजूद कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे पड़ते हैं. रिसर्च के चीफ डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा ऐसी दवाइयां जो खास तौर पर टाइप 2 सूजन को कम करती हैं, इस्तेमाल होती हैं, फिर भी कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे पड़ते रहते हैं. इसका मतलब यह है कि टी2 सूजन के अलावा भी कुछ और तरीके हैं जो अस्थमा को बढ़ाते हैं.
जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित इस रिसर्च में, वैज्ञानिकों ने 176 बार ऐसे समय पर बच्चों के नाक से नमूने लिए जब वे अचानक से सांस की बीमारी से पीड़ित थे. फिर इन नमूनों की खास जांच की गई जिससे पता चला कि उनके शरीर में कौन-कौन से बदलाव हो रहे हैं. इस दौरान वैज्ञानिकों ने तीन मुख्य सूजन के कारण खोजे.
पहला एपिथेलियम इन्फ्लेमेशन पाथवे था यानी फेफड़ों की सतह पर सूजन का खास रास्ता, जो उन बच्चों में ज्यादा पाया गया जो मेपोलिजुमैब दवा ले रहे थे. दूसरा मैक्रोफेज-ड्राइवन इन्फ्लेमेशन है. यह खासकर वायरल सांस की बीमारियों से जुड़ा हुआ था, जहां शरीर के व्हाइट ब्लड कण ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और तीसरा है म्यूकस हाइपरसेक्रेशन और सेलुलर स्ट्रेस रिस्पॉन्स यानी फेफड़ों में ज्यादा बलगम बनना और कोशिकाओं का तनाव, जो दवा लेने वाले और न लेने वाले दोनों बच्चों में अस्थमा के दौरों के दौरान बढ़ जाता है.
इस पर डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा कि रिसर्च में पाया कि जिन बच्चों को दवा लेने के बाद भी अस्थमा का अटैक आता है, उनमें एलर्जी से जुड़ी सूजन कम होती है, लेकिन फेफड़ों की सतह पर अन्य सूजन के रास्ते सक्रिय होते हैं. इसका मतलब है कि अस्थमा बहुत जटिल है और हर बच्चे में अलग-अलग वजह से होती है.शहरों में रहने वाले बच्चों में अस्थमा अधिक पाया जाता है, और इस रिसर्च से मिली जानकारियां खास तौर पर उनके लिए बड़ी उम्मीद हैं. इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि किस बच्चे को किस तरह की सूजन ज्यादा है और उसके अनुसार सही इलाज दिया जा सकेगा.
(आईएएनएस)
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी इसे अपनाने से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.



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