नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के बदायूं (Budaun) के वैद्यों का टोला में नजीब समेत 6 लोगों का ये परिवार 5 साल पहले तक हंसी-खुशी रह रहा था. नजीब अहमद के पिता नफीस अहमद फर्नीचर का कारोबार करते थे. यही नहींं, कारोबार की तरह से अपने घर को भी उन्होंने एक गुलदस्ते जैसा सजाया हुआ था. नजीब जेएनयू में बॉयोटेक्नोलॉजी का छात्र था. मंझला बेटा मुजीब एमटेक कर रहा था और सबसे छोटा बेटा हसीब भी पढ़ाई कर रहा था. नजीब डॉक्टर तो मुजीब प्रोफेसर बनना चाहता था. तीन भाइयों, लेकिन अब सिर्फ दो भाइयों की बहन भी कॉलेज जाती थी. जब नजीब जेएनयू (JNU) से घर आता था तो परिवार चहक जाता था, लेकिन 15 अक्टूबर 2016 को नजीब जेएनयू से क्या गायब हुआ कि इस घर की खुशियां ही चली गईं. नजीब को तलाशने में मां फातिमा (Fatima) शहर-शहर गलियों की खाक छानती रहीं, लेकिन आज तक वो उसको दोबारा नहीं देख सकीं.
नजीब (Najeeb) की तलाश में सड़क ही उनका दूसरा घर बन चुका था, लेकिन देश की सड़कों पर भटकती फातिमा अब बिस्तर पर हैं. उनके पैर अब उनका साथ नहीं देते हैं. वहीं, नजीब को तलाशने में परिवार की संपत्ति बिकना शुरू हो गई थी. छोटी बहन की शादी के रुपये खर्च हो गए. बेटे की याद में पिता दिल के मरीज हो गए. काम-धंधा बंद हो गया. नजीब की याद में पूरा दिन पलंग पर बीतता है. कान डोर बेल पर लगे रहते हैं. दवा का भी कोई भरोसा नहीं रहता है. थोड़ी बहुत तबीयत ठीक होती है तो दुकान पर चले जाते हैं, नहीं तो बस घर पर ऐसे ही पड़े रहते हैं.
पीएचडी करने का टूट गया सपना
जब नजीब गायब हुआ था तो मुजीब एमटेक कर रहा था. अब एमटेक की पढ़ाई पूरी हो चुकी है. मुजीब पीएचडी करना चाहता है, लेकिन घर के हालात इसकी इजाजत नहीं दे रहे हैं. परिवार के पांच लोगों की जिम्मेदारी मुजीब के कंधों पर आ गई है. अब वह नौकरी की तलाश में निकल पड़ा है. प्रोफेसर बनने का ख्वाब टूटता हुआ नजर आ रहा है. घर में रखी जमा पूंजी भी अब ठिकाने लग चुकी है.
सड़क पर ही कटने लगे मां के दिन-रात
कुछ वक्त पहले तक बूढ़ी मां फातिमा नफीस का एक पैर बदायूं में तो दूसरा 275 किमी दूर दिल्ली में रहता था. हफ्ते के दो दिन उस शहर में भी गुजर जाते हैं जहां से खबर आ जाए कि नजीब यहां हो सकता है. फातिमा ने कोई दरगाह, मस्जिद, रेलवे स्टेशन और किसी शहर की ऐसी गली नहीं छोड़ी जहां नजीब के मिलने की आस हो. यहां तक की सड़क किनारे बैठकर अपना दर्द बयां करने के दौरान पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ीं. शुगर, ब्लड प्रेशर, जोड़ों के दर्द और उससे भी ज्यादा नजीब के न मिलने की जुदाई के दर्द ने मां को कमजोर कर दिया है.
डॉक्टरों की सलाह पर अब वक्त आराम करते हुए बीतता है, लेकिन बीते 5 साल में शहरों को नापने वालीं मां को आराम भी खलता है. उन्हें लगता है कि आराम के चक्कर में वो नजीब को तलाशने वाले वक्त को बर्बाद कर रही हैं, लेकिन कुछ कोरोना तो कुछ खराब तबीयत के चलते फातिमा नफीस वक्त के हाथों मजबूर हैं.
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दिया टूटते परिवार को सहारा
नजीब का छोटा भाई हसीब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुका है. नजीब की तलाश में अपना सब कुछ गंवा चुका परिवार टूट चुका था, लेकिन ऐसे में दिल्ली वक्फ बोर्ड नजीब के परिवार की मदद के लिए आगे आया. दिल्ली के विधायक अमानतउल्लाह खान ने की पहल पर वक्फ बोर्ड ने नगद रकम से भी परिवार की मदद की और छोटे भाई हसीब को बोर्ड में इंजीनियर के पद पर नौकरी भी दी.पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.
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