What is PPD signs of postpartum depression on Women and how it affects new mothers | क्या है PPD, जो बच्चे के जन्म के बाद मां का जीना कर देता है हराम? ऐसे पहचानें इशारे

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What is PPD signs of postpartum depression on Women and how it affects new mothers | क्या है PPD, जो बच्चे के जन्म के बाद मां का जीना कर देता है हराम? ऐसे पहचानें इशारे



What Is Postpartum depression: पोस्टमार्टम डिप्रेशन जिसे पीपीडी (PPD) भी कहते हैं, एक सीरियस मेंटल हेल्थ कंडीशन है जो डिलिवरी के बाद महिलाओं को अफेक्ट कर सकता है. हालांकि चाल्ड बर्थ के तुरंत बाद न्यू मदर्स के लिए मूड स्विंग या ‘बेबी ब्लूज़’ एक्सपीरिएंस करना कॉमन है, पीपीडी ज्यादा इंटेंस और लंबे वक्त तक चलने वाला होता है, जिसके लिए अक्सर प्रोफेक्शन हेल्प और ट्रीटमेंट की जरूरत होती है. ये आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद पहले कुछ हफ्तों के अंदर पैदा होता है लेकिन पहले साल के दौरान कभी भी डेवलप हो सकता है.
पोस्टमार्टम डिप्रेशन के लक्षणडॉ. मंजुषा गोयल (Dr. Manjusha Goel), , लीड कंसल्टेंट, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, सीके बिरला हॉस्पिटल, दिल्ली ने बताया कि पोस्टमार्टम डिप्रेशन के आम लक्षणों में लगातार उदासी, चिड़चिड़ापन, निराशा की भावना और डेली एक्टिविटीज या बच्चे में दिलचस्पी की कमी शामिल है. माताओं को ज्यादा थकान, नींद और भूख में बदलाव, अपने नवजात बच्चे के साथ बॉन्ड बनाने में मुश्किलें, और गिल्ट, शर्म या वर्थलेस होने की फीलिंग एक्सपीरिएंस हो सकती हैं. कुछ मामलों में, पीपीडी में एंग्जायटी, पैनिक अटैक या बेवजह के ख्याल शामिल हो सकते हैं, जिसमें खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने का डर भी शामिल है.
मां को कैसे परेशान करता है पीपीडी?पीपीडी न सिर्फ मां के मेंटल और फिडिकल वेल बीइंग को अफेक्ट करता है बल्कि बच्चे की देखभाल करने और उसके साथ बॉन्डिंग बनाने की उसकी क्षमता को भी प्रभावित करता है. इसका बच्चे के इमोशनल डेवलपमेंट और पूरे परिवार पर काफी असर पड़ सकता है. पीपीडी के जरिए होने वाले इमोशनल स्ट्रेन के कारण लाइफ पार्टनर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ रिश्ते भी खराब हो सकते हैं.

पीपीडी की वजहपोस्टमार्टम डिप्रेशन की कोई एक वजह नहीं है, लेकिन इसके फैक्टर्स में हार्मोनल चेंजेज, नींद की कमी, मानसिक बीमारी का इतिहास, सपोर्ट की कमी और मदरहुड के लिे इमोशनल एडजस्टमेंट शामिल हैं. लक्षणों को जल्दी पहचानना और प्रोफेशनल हेल्प लेना जरूरी है. ट्रीटमेंट ऑप्शंस में थेरेपी, दवा, सपोर्ट ग्रुप और लाइफस्टाइल में बदलाव जैसे आराम, न्यूट्रीशन और एक्सरसाइज शामिल हो सकते हैं.

पीपीडी कोई ‘कलंक’ नहीं हैयह समझना जरूरी है कि पोस्टमार्टम डिप्रेशन कमजोरी का इशारा या बच्चे के प्रति मां के प्यार का अक्स नहीं है, टाइमली इंटरवेंशन और कंपैशनेट केयर के साथ, ज्यादातर महिलाएं पूरी तरह से ठीक हो जाती हैं और अपने पैरेंटिंह के सफर में आगे बढ़ती हैं. खुली बातचीत को एनकरेज करना और मैटरनल मेंटल के कथित कलंक को कम करना इस कमजोर समय के दौरान नई माताओं का सपोर्ट करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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