Paediatric Cancer Diagnosis: पीडियाट्रिक कैंसर बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है. अगर हम वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि दुनियाभर में हर साल 4 लाख नए मामले सामने आते हैं. सीनियर हिस्टोपैथोलॉजिस्ट डॉ. आरएम लक्ष्मीकांत के मुताबिक इस बीमारी की वजह से काफी बच्चों की जिंदगी छिन जाती है.
पीडियाट्रिक कैंसर से बच्चों को खतराहालांकि इनमें से 80 फीसदी पीडियाट्रिक कैंसर का इलाज मुमकिन है, लेकिन अर्ली डायग्नोसिस की कमी, गलत डायग्नोसिस, बहुत देर से डायग्नोसिस के कारण इस तरह की बीमारियों में दिक्कतें आती हैं. इसके अलावा ट्रीटमेंट को बीच में छोड़ देना और टॉक्सिसिटी और रीलैप्स के कारण भी मौत हो सकती है. बच्चों और किशोर वर्मग में मोस्ट कॉमन कैंसर ल्यूकेमिया (24.7%), ट्यूमर्स और नर्वस सिस्टम (17.2%), नॉन हॉकिंग लिंफोमा (7.5%), हॉकिंग लिंफोमा (6.5%), सॉफ्ट टिश्यू सार्कोमा (5.9%) शामिल हैं.
कैसे होता है डायग्नोसिस?
पीडियाट्रिक कैंसर का पता लगाने के लिए कई तरह के सैंपल की जरूरत पड़ती है जिसमें ब्लड, सीरम, बॉडी फ्लूइड और टिश्यू शामिल हैं. इस तरह की जांच का मकसद असल कैंसर के टाइप का पता लगाना है, साथ ही बीमारी कितनी गहरी है इसकी जानकारी मिलने से थेरेपी करने में आसानी होती है.
ल्यूकेमिया (Leukaemia) की बात करें तो, पेरिफेरल स्मीयर या बोन मौरो एस्पिरेशन की स्टडी की जाती है जिसके बाद फ़्लो साइटॉमेट्री (Flow cytometry) होती है, जिसमें फ्लोरेसेंस लेबल्ड एंटबॉडीज का यूज किया जाता है जिससे ट्यूमर सेल्स में एंटीजन का पता लगाया जा सके और ट्यूमर के टाइट की जानकारी मिल सके
जहां तक सॉलिड ट्यूमर की बात है वहां इमेज गाइडेड बायोपसी की जाती है, जिसके बाद हिस्टोपैथोलॉजिकल एग्जामिनेशन और इम्युनोहिस्टोकैमिस्ट्री की जाती है. अगर जरूरत पड़े तो डॉक्टर्स ट्यूमर सेल्स में एक्सप्रेस होने वाले एंटीजंस का इवैलूएट करते हैं.
पीडियाट्रिक ट्यूमर्स का पैथोजेनेसिस एडल्ट्स से अलग और यूनिक होता है, जो आमतौर पर सिंगल जेनेटिक ड्राइवर इवेंट से ऑरिजिनेट करता है . मौजूदा दौर में मॉलिक्यूलर क्लासिफिकेशन पर ज्यादा जोर दिया जाता है.
असल बात ये है कि जेनेटिक अल्ट्रेशन की स्टडी किए बिना ट्यूमर्स का डायग्नोसिस इनकंप्लीट है. डॉक्टर्स इस प्लेटफॉर्म का यूज करते ताकि जिसमें कई तरह की चीजें शामिल होती हैं, जैसे-
-FISH: जिसमें ट्रांसलोकेशन का पता लगाया जा सके-RT PCR: जिसमें फ्यूजन जीन्स और प्वॉइंट म्यूटेशन का पता लग सके-Next Generation Sequencing: जिसमें जेनेटिक अल्ट्रेशन की स्टडी की जा सके-इसके अलावा कई सीरम ट्यूमर मेकर्स का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें AFP, Beta HCG और Urine VMA शामिल हैं.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
Indian Navy commissions first operational squadron on Western Seaboard
A total of 24 MH-60R contracted in February 2020 at the cost of Rs 15,000 crore ($2.13 billion)…

