Uttar Pradesh

UP के बस्ती में पांडवों ने काटा था अज्ञातवास, जानिए इस गांव में क्यों लोग खाते थे खौफ!



कृष्ण गोपाल द्विवेदी
बस्ती: द्वापर युग में जब पांडव जुए के खेल में कौरवों से हार गए थे तो शर्तानुसार उन्हें 12 वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास झेलना पड़ा था. मान्यता है की वो एक वर्ष का अज्ञातवास बस्ती जिले कप्तानगंज-दुबौलिया मार्ग पर मनोरमा नदी के तट के पंडूल घाट पर व्यतीत किये थे. यहां पर पांडवों की कई निशानी आज भी विद्यमान है. जैसे पंडूल घाट,रसोइया गांव, हडही गांव, सिद्धव नाला,और झुंगीनाथ गांव. चैत पूर्णिमा में हनुमान जयंती के दिन यहां हर साल बहुत बेहद स्तर पर मेला भी लगता है और लोग यहां आकर पांडवों की पूजा भी करते हैं. पांडवों का छाप इस क्षेत्र में आपको हर जगह देखने को मिल जाएगा.
पांण्डव द्वारा बनाई गई रसोई आज भी मौजूद है. जहां वे खाना बनाने का काम करते थए. इसलिए उस जगह का नाम पड़ गया रसोइया गांव, रसोइया गांव आज भी विद्यमान है. मनोरमा के जिस तट पर पांडव स्नान करते थे. उसका नाम पड़ गया पंडूल घाट.
क्यों पड़ा गांव का नाम ‘हड़ही’बताया जाता है की इस क्षेत्र में एक सिद्धव नामक दानव रहता था. जिसने पूरे क्षेत्र में आतंक फैला रखा था और जो भी मिलता उसको मार के खा जाता था. जिससे यहां लोग काफी भयभीत रहते थे. फिर पारी बाधी गई. जिसमें क्षेत्र के प्रति घर से एक व्यक्ति को भोजन के साथ सिद्धव दानव के पास जाना पड़ता था और वह भोजन के साथ ही जो व्यक्ति भोजन लेकर आता था. उसको भी मार के खा जाता था. क्षेत्रवासियों के रक्षा के लिए एक दिन भीम गए और उन्होंने सिद्धव दानव का वध कर दिया. उसको मारने के बाद हड़ही से घसीटते हुए रसोइया तक लेकर आए. जिससे एक नाला सा बन गया. जो आज भी मौक्के पर विद्यमान है. जिसको सिद्धव नाला के रूप में जाना जाता है.
झुंगीनाथ में करते थे भगवान शिव की पूजास्थानीय लोग बताते हैं की पांडव यही झुंगीनाथ गांव में अवतरित हुए शिवलिंग की पूजा किए करते थे. यह मंदिर काफी प्राचीन और सिद्ध मंदिर है. यहां जो भी कामना किया जाता है वो पूरा भी होता है. काफी दूर-दूर से लोग भगवान शिव की पूजा करने यहां आते भी हैं. महाशिवरात्रि व कावड़ के समय यहां श्रद्धालु हजारों की संख्या में आकर पूजा पाठ करते हैं और चैत पूर्णिमा में यहां बहुत बड़ा मेला भी लगता है.
नहीं हुआ गांव का विकास?भले ही यहां से प्राचीन भारत की बहुत सारी यादें जुड़ी हो. लेकिन यह क्षेत्र आज भी शासन-प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बना पड़ा है. स्थानीय निवासी 70 वर्षीय राजाराम सोनकर बताते हैं कि यह जगह काफी सिद्ध जगह है. यहां जो भी कोई कामना होती है. वो पांडव के पूजा पाठ करने से पूर्ण होती है. लेकिन शासन-प्रशासन ने कभी इस मंंदिर के विकास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. नेता अधिकारी आते हैं. दावे करते हैं. लेकिन वो सब दावे सिर्फ कागजी बनकर रह जाते हैं. जो धरातल पर नहीं उतरते.

यहां के पुजारी राम शंकर दास ने बताया कि यहां पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास का समय बिताया था. काफी लोग आते हैं कामना करते हैं और उनका कामना पूरा भी होता है.
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