Uttar Pradesh

UP Assembly elections 2022 Congress field muslim Candidate Mohammed Rashid on Etawah Sadar seat may ruin Samajwadi party game



इटावा. महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े उत्तर प्रदेश के इटावा सदर विधानसभा सीट (Etawah Sadar Assembly Seat) पर कांग्रेस पार्टी (Congress) ने आजादी के 52 वर्ष बाद किसी मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतार कर राजनीतिक दलों के सामने एक नई चुनौती बढ़ा दी है. कांग्रेस ने पार्टी के कई पदों पर रहते हुए बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाने वाले मोहम्मद राशिद को उम्मीदवार घोषित किया है. वह अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष, पूर्व शहर अध्यक्ष, वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.
मोहम्मद राशिद की पकड़ प्रदेश संगठन पर अच्छी मानी जाती है. इटावा में कई कार्यक्रम हुए, जिनमें राशिद ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. पार्टी के प्रति मेहनत और लगन को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व में उनको प्रत्याशी बनाया. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि आज से 52 साल पहले कांग्रेस ने हुजूर हाजिक को यहां से अपना प्रत्याशी बनाया था, जो कि बहुत ही कम अंतर से चुनाव हारे थे. तब से लेकर अब तक किसी राष्ट्रीय पार्टी ने सदर विधानसभा सीट पर मुस्लिम चेहरे पर दांव नहीं लगाया गया.
कांग्रेस पार्टी से 1985 में सुखदा मिश्रा ने इस सीट पर आखिरी बार जीत दर्ज की थी. उसके बाद 1989 में वह जनता दल से चुनाव लड़ीं. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस ने मोहम्मद राशिद पर दांव लगाकर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंधमारी करने का काम कर दिया है.
मोहम्मद राशिद ने कहा कि पार्टी ने मेरे ऊपर जो विश्वास जताया है, उस विश्वास को कायम रखते हुए पूरी जी-जान से चुनाव लड़ेंगे और इस सीट पर जीत का परचम फहराएंगे. राशिद ने कहा कि उन्होंने सर्व समाज की आवाज उठाई है, जिससे कि मुझे सभी समाज का वोट मिल रहा है, सहयोग मिल रहा है.
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बताते चले कि 2 साल पहले 19 जनवरी को सीएए, एनआरसी, संविधान बचाओ और महिला उत्पीड़न के विरोध में इटावा के शास्त्री चौराहा पर लगभग 50 घंटे भूख हड़ताल कर मोहम्मद राशिद ने एक बड़ा आंदोलन किया था. इसके बाद से राशिद प्रदेश नेतृत्व की नजरों में जगह बनाने में कामयाब रहे. राशिद ने कई मुद्दों को लेकर आवाज उठाई, साथ ही कृषि आंदोलन के दौरान भी कई बार जेल भेजे गए.

राशिद की मेहनत और लगन को देखते हुए प्रदेश नेतृत्व ने 52 वर्ष बाद मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतार कर राजनीतिक सरगर्मी और बढ़ा दी है. काग्रेंस पार्टी के संस्थापक ए.ओ. ह्यूम इसी इटावा जिले में जिलाधिकारी के तौर पर तैनात रहे हैं. उनके कार्यकाल में इटावा को एक नई पहचान मिली थी. ह्यूम से पहले इटावा की कोई बड़ी पहचान नहीं मिली थी. बाद में मुलायम सिंह यादव के प्रभावी होने के बाद इटावा की पहचान काग्रेंसी गढ़ के रूप मे होने लगी है.

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