Uttar Pradesh

UP Assembly Elections 2022 bjp rebel surendra singh will open account of vip chief mukesh sahni in up chunav upat



बलिया. मैं नाव हूं. नदी पार करने में युगों-युगों से सहायक हूं. मैंने ही प्रभु श्रीराम को नदी के पार उतारा था. तब मैं निषादराज केवट की नौका थी. गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं- कृपा सिंधु बोले मुसुकाई, सोइ करु जेहिं तव नाव ना जाई. बेगि आनु जल पाय पखारू, होत बिलंबु उतारहिं पारु. जासु नाम सुमिरत एक बारा, उतरहिं नर भवसिंधु अपारा. सोई कृपालु केवटहिं निहोरा, जेहिं जगु किये तिहु पगहु ते थोरा.रामायणकाल के निषाद राज और उनकी नौका आधुनिककाल की राजनीति में फिर जीवंत हो गयी है. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections 2022) में निषाद समुदाय की राजनीति निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. बिहार के निषाद नेता मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) नाव (चुनाव चिह्न) पर सवार हो कर इस चुनावी वैतरणी को पार करना चाहते हैं.

मैं नाव हूं. 2022 की चुनावी सरिता में अपनी (नाव चुनाव चिह्न) अवस्थिति का वर्णन कर रही हूं. बिहार के पशुपालन और मत्स्य पालन मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी (वीआइपी) उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है. बिहार में भाजपा और वीआइपी सत्ता में भागीदार हैं. भाजपा ने अपने कोटे से मुकेश सहनी को एमएलसी बनाया था जिससे वे मंत्री बने रहे, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ खुलेआम ताल ठोक रहे हैं. मंगलवार को उन्होंने अम्बेडकरनगर के आलापुर विधानसभा क्षेत्र में प्रचार किया. मुकेश सहनी ने सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया कि भाजपा ने निषाद समुदाय का वोट लेकर उन्हें ठगा है. उत्तर प्रदेश में भाजपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है. बिहार के निषाद नेता मुकेश सहनी उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह रोक रहे हैं. उन्होंने सबसे जबरदस्त दांव खेला है बलिया जिले में. वीआइपी ने बलिया जिले की सात में से पांच सीटों पर उम्मीदवार दिये हैं. पांच में से तीन उम्मीदवार भाजपा के बागी हैं.

सुरेन्द्र पार लगा सकते हैं मुकेश की नाव !
नदियों से घिरे बलिया जिले में मेरा (नाव) बहुत महत्व है. बैरिया विधानसभा सीट के विधायक सुरेन्द्र सिंह भाजपा के टिकट पर जीते थे. लेकिन 2022 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया. मुकेश साहनी ने इस मौके को लपक लिया. उन्होंने सुरेन्द्र सिंह से वीआइपी के ‘नाव’ चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने का आग्रह किया. विधायक सुरेन्द्र सिंह वीआइपी में शामिल हो गये. अब वे नाव के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं. सुरेन्द्र सिंह को जुझारू नेता माना जाता है. जनता में उनकी पकड़ है. टिकट कटने के बाद जब सुरेन्द्र सिंह लखनऊ से बैरिया लौटे थे तब उनके स्वागत में भारी भीड़ जमा हो गयी थी. इसकी वजह से कोरोना नियमों के तहत उन पर केस दर्ज हो गया था. माना जा रहा है कि भाजपा से बेटिकट होने के बाद उन्होंने स्थानीय लोगों की सहानुभूति अर्जित की है. वीआइपी ने मौजूदा विधायक को उम्मीदवार बना कर एक बड़ा दांव खेला है. अगर सुरेन्द्र सिंह ने उत्तर प्रदेश में वीआइपी का खाता खोल दिया तो निषाद राजनीति एक नये मोड़ पर खड़ी हो जाएगी.

एक विधायक वाली पार्टी भी बदल सकती है राजनीति का रुख
मैं नाव हूं. अब डालते हैं निषाद राजनीति पर एक नजर. दस्यु से नेता बनी फूलन देवी को निषाद समुदाय का बड़ा नेता माना जाता रहा है. उनके निधन के बाद निषाद राजनीति के कई ध्रुव बन गये. अभी संजय निषाद की पार्टी ( निषाद पार्टी) को उत्तर प्रदेश में प्रभावकारी माना जा रहा है. 2017 में निषाद पार्टी ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था. एक सौ सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन केवल एक सीट पर जीत मिली. यह जीत भी स्थायी नहीं रही. ज्ञानपुर से जीते विजय मिश्र बाद में भाजपा में शामिल हो गये. इसके बावजूद एक विधायक वाली निषाद पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम मुकाम बनाया. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव जीत कर निषाद पार्टी के जनाधार को और मजबूत किया. आज निषाद पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन, उसकी बढ़ती हुई ताकत का प्रमाण है. यानी एक विधायक वाली पार्टी भी राजनीति का रुख बदल सकती है. 2022 के चुनाव में वीआइपी ने भी इसी सोच के साथ पासा फेंका है. मुकेश सहनी के मुताबिक, वीआइपी ने पूर्वांचल में 76 उम्मीदवार उतारे हैं. अगर इनमें से सुरेन्द्र सिंह के रूप में वीआइपी को एक भी सीट मिल जाती है तो वह उत्तर प्रदेश में अपना पांव जमा सकती है. मुकेश सहनी ने फूलन देवी को आदर्श मान कर यूपी के अखाड़े में ताल ठोकी है. निषाद आरक्षण को उन्होंने ब्रह्मास्त्र बनाया है.

बलिया जिले में मुकेश सहनी का दांव
मैं (नाव) बलिया जिले की प्राचीन काल से सेवा करती रही हूं. आज भी कर रही हूं. बलिया जिले के चुनावी रण में मुकेश सहनी ने भाजपा के पूर्व योद्धाओं को अपना सेनापति बनाया है. बांसडीह में वीआइपी ने अजय शंकर पांडेय को उम्मीदवार बनाया है. अजय शंकर पांडेय पहले बसपा में थे. फिर वे भाजपा से जुड़े. वे बांसडीह से टिकट के दावेदार थे लेकिन भाजपा ने उनकी दावेदारी को दरकिनार कर दिया था. बलिया नगर से वीआइपी के उम्मीदवार जितेन्द्र तिवारी भी भाजपा के बागी नेता हैं. जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे नाव पर सवार हो गये. वीआइपी ने फेफना विधानसभा सीट पर विवेक सिंह कौशिक को उम्मीदवार बनाया है. वे छात्र राजनीति में सक्रिय रहे हैं और आक्रामक भाषण के लिए जाने जाते हैं. सिकंदरपुर सीट पर भागमनी सहनी वीआपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. वे पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. इसके पहले वे उनन्नति दल के महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष थीं. वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी इन दिनों पूर्वांचल में लगातार सभाएं कर रहे हैं. वे हर चुनावी सभा में निषाद समुदाय से अपनी ताकत दिखाने की अपील कर अपने लिए वोट मांग रहे हैं. माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय (सभी उपजातियां) के 18 फीसदी वोटर हैं. लेकिन इस बड़े समूह का कोई एक सर्वमान्य नेता नहीं है. उत्तर प्रदेश के कई निषाद नेता पहले से इस होड़ में थे. अब बिहार के मुकेश सहनी भी इसमें शामिल हो गये हैं.

(Disclaimer: इस ओपिनियन में लिखी गई बातें लेखक की निजी राय है. किसी भी विवाद की स्थिति में न्यूज़18 का कोई लेनादेना नहीं है.)

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