सहारनपुर. देश में इन दिनों यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर बहस छिड़ी हुई है. जहां एक ओर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत तमाम विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं, वहीं सहारनपुर की इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने समान नागरिक संहिता पर लॉ-कमिशन को भेजे अपने सुझाव में कहा कि भारत देश में यूसीसी लागू करने की आवश्यकता नहीं है. देवबंद ने कहा कि इसको लागू करने का मतलब भारत के संविधान में दिए गए अनुच्छेद 25 और 26 के तहत दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन होगा.

मुस्लिम पर्सनल-लॉ-बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के बाद दारुल उलूम ने भी समान नागरिक संहिता के खिलाफ बिगुल बजा दिया है. शुक्रवार को दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मौलाना अब्दुल्ल खालिक मद्रासी ने लॉ-कमिशन को भेजे पत्र में कहा कि देश में सभी समुदायों के लोगों के लिए इस कानून की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू होने पर देश के सभी नागरिकों के व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों से दूर कर दिया जाएगा. जिसके चलते विवाह, तलाक, विरासत आदि को एक कानून से नियंत्रित किया जाएगा. उन्होेंने पत्र में यूसीसी को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों और सामाजिक अव्यवस्था के खिलाफ बताया.

पत्र में समान नागरिक संहिता को सामाजिक अशांति को जन्म देने वाला और संविधान की भावना के खिलाफ बताया. पत्र में कहा गया है कि संविधान संस्कृति और धर्म के पालन करने के अधिकार की रक्षा करता है. लेकिन यह कोड विविध पहचान रखने वाले नागरिकों के मौलिक अधिकारों के तहत संरक्षित, सांस्कृतिक आधिकारों को प्रभावित करने वाला है. पत्र में लॉ-कमिशन को कहा गया कि अन्य मुस्लिम संगठनों की तरह दारुल उलूम भी समान नागरिकता के विचार को खारिज करती है, क्योंकि यह कानून देश को समावेशिता और सहिष्णुता से कई कदम पीछे ले जाने वाला है. इसलिए दारुल उलूम इसे संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ मानता है.

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