Last Updated:August 19, 2025, 21:31 ISTसुगम पाल सिंह चौहान… इस नाम के दीवाने कभी अंग्रेज हुआ करते थे. शायद ही देश-दुनियाभर में हर किसी ने इनका नाम सुना हो, लेकिन सहारनपुर का बच्चा-बच्चा इन्हें जानता है, क्योंकि खुद अंग्रेज ने खुश होकर इन्हें बंदूक…और पढ़ेंसहारनपुर. देश को आजाद कराने में विभिन्न आंदोलनकारियों का योगदान रहा है. उन्हीं में से एक है स्व. सुगम पाल सिंह चौहान, जो राजपूत समाज से आते हैं. सुगम पाल सिंह चौहान के ठाठ वाट को देखकर अंग्रेज कर्नल ने उनको बंदूक दी थी. लेकिन बंदूक देने के साथ-साथ उस पर बंदीसे भी लगा दी थी. जी हां उस दौर की बात है जब देश अंग्रेजों का गुलाम था सन 1933 में गांव काशीपुर के रहने वाले सुगम पाल सिंह चौहान एक बड़ी लैंडलॉर्ड और बड़ी-बड़ी मूछे रखने वाले आंदोलनकारी थे. उन्होंने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया देश की आजादी के विभिन्न आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया.
इस दौरान वह सहारनपुर जिले में स्थित कलेक्ट्रेट में किसी काम से गए हुए थे तब वहां के अंग्रेज कर्नल ने उनको देखा और अपने पास बुलाकर पूछा कि आप राजपूत हो और आपके पास कौन सा हथियार है? जब उन्होंने हथियार नहीं होने की बात कही तब अंग्रेज ने उनसे कहा आप राजपूत हो और आपके पास हथियार नहीं जबकि राजपूतों ने हमेशा अपने देश, अपने समाज की रक्षा की है. तब उनसे खुश होकर अंग्रेज कर्नल ने उनको एक बंदूक दी थी. बंदूक के साथ-साथ लगभग 5000 गोलियां भी उनको फ्री में दी थी, लेकिन इन गोलियों का इस्तेमाल वह अंग्रेजों पर नहीं कर सकते थे. क्योंकि अंग्रेजी कर्नल ने उनसे यह वचन भी लिया था कि आप इस बंदूक और गोलियों का इस्तेमाल आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों पर नहीं करेंगे. आज भी वह बंदूक विरासत के रूप में सुगम पाल सिंह चौहान के बेटे रामबीर सिंह चौहान के पास मौजूद है.
विरासत के रूप में मौजूद है ब्रिटिश काल की बंदूक
रामबीर सिंह चौहान ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि मेरे पिता जी सुगम पाल सिंह चौहान 1933 में जब आजादी की लड़ाई चल रही थी और हमारे देश मे ब्रिटिश गवर्नमेंट थी. तो मेरे पिताजी आजादी की लड़ाई में भाग लेते करते थे, और इधर-उधर देश के हिस्सों में जाकर आजादी की लड़ाई लड़ते थे. यह बात है 1933 की जब हमारा देश गुलाम था तो मेरे पिताजी सहारनपुर कलेक्ट्रेट जहां पर कोर्ट हुआ करती थी, साथ ही डीएम साहब के साथ-साथ वहां पर मिलिट्री का ऑफिस भी हुआ करता था, तो मिलिट्री के एक करनाल जो अंग्रेज करनाल थे उन्होंने मेरे पिताजी जो पर्सनालिटी और बड़ी-बड़ी मुछे और पगड़ी पहनते थे. अपने पास बुलाया और पूछा आपके पास कौन सा हथियार है. मेरे पिताजी ने मना कर दिया क्योंकि देश की आजादी की लड़ाई चल रही है तो ऐसे में ब्रिटिश सरकार हमें हथियार क्यों देगी.
पिताजी की पर्सनालिटी और राजपूत होने पर उनको हथियार देने की बात कही और उनसे उस समय के चांदी के 1000 सिक्के मंगाए और अगले ही दिन उनको बंदूक दे दी गई. उस बंदूक को देने के साथ ही उस बंदूक पर बंदीसे से भी लगा दी गई कि आप इस बंदूक का इस्तेमाल देश की आजादी के लिए अंग्रेजों पर नहीं करेंगे. मेरे पिताजी की यह बंदूक अब मेरे पास है और आज विरासत के रूप में हमेशा रहेगी और आगे भी मेरा प्रयास रहेगा कि आगे भी हमेशा के लिए यह बंदूक विरासत के रूप में मेरे परिवार और आगे बच्चों के पास रहेगी. यह बंदूक जर्मनी की बनी हुई है और 12 बोर 32 इंची बंदूक है जो आज नहीं मिलती.Abhijeet Chauhanन्यूज18 हिंदी डिजिटल में कार्यरत. वेब स्टोरी और AI आधारित कंटेंट में रूचि. राजनीति, क्राइम, मनोरंजन से जुड़ी खबरों को लिखने में रूचि.न्यूज18 हिंदी डिजिटल में कार्यरत. वेब स्टोरी और AI आधारित कंटेंट में रूचि. राजनीति, क्राइम, मनोरंजन से जुड़ी खबरों को लिखने में रूचि. न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।Location :Saharanpur,Saharanpur,Uttar PradeshFirst Published :August 19, 2025, 21:31 ISThomeuttar-pradesh’तुम राजपूत हो और…’, अंग्रेज ने दी थी 5000 गोलियां और बंदूक, पर लिया था वचन