महाराजगंज: उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के निचलौल क्षेत्र में राजा रतन सेन का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है. राजशाही भले ही समाप्त हो चुकी है, लेकिन उनसे जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरें और उनसे संबंधित लोककथाएं आज भी वर्तमान पीढ़ी को अतीत से जोड़ती हैं. इन्हीं धरोहरों में सबसे प्रमुख है निचलौल का प्राचीन राम जानकी मंदिर, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इतिहास का जीवंत प्रमाण भी माना जाता है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर राजा रतन सेन के महल के ठीक ऊपर स्थित है और इसी स्थान पर उनका दरबार लगा करता था.
राम जानकी मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर किसी साधारण स्थान पर नहीं बल्कि एक पुराने महल के खंडहरों के ऊपर स्थित है. ऊंचे टीले जैसे ढांचे को देखने मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इसके नीचे किसी बड़े निर्माण की मौजूदगी रही होगी. बताया जाता है कि प्राचीन समय में निचलौल क्षेत्र के शासक राजा रतन सेन का भव्य महल इसी स्थान पर था. समय के साथ महल नष्ट हो गया, लेकिन उसी स्थान पर राम जानकी मंदिर की स्थापना हुई, जो अपनी आस्था और ऐतिहासिकता के कारण आज भी विशेष पहचान रखता है.
पुजारी के अनुसार मंदिर की स्थापना का सटीक समय उपलब्ध नहीं है. इसका उल्लेख किसी ग्रंथ या अभिलेख में नहीं है, परंतु स्थानीय लोगों का कहना है कि सदियों से यह मंदिर यहाँ पर मौजूद है. इसकी प्राचीनता और संरचना यह दर्शाती है कि इसका इतिहास काफी पुराना है.
राम जानकी मंदिर के आस-पास के क्षेत्रों में राजा रतन सेन की विरासत आज भी दिखाई देती है. मंदिर के ठीक बगल में स्थित रतन सेन इंटरमीडिएट कॉलेज उन्हीं की स्मृति में संचालित होता है. लोगों में उनके न्यायप्रिय स्वभाव और क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं. इन लोककथाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाया जाता है, जो राजा की लोकप्रियता को आज भी कायम रखती हैं. मंदिर परिसर का वातावरण भी इसकी ऐतिहासिकता का अहसास कराता है. ऊंचाई पर स्थित यह संरचना दूर से ही आकर्षित करती है. आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में राजा से जुड़े कई अन्य अवशेष और चिह्न भी देखे जा सकते हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि निचलौल कभी एक समृद्ध और महत्वपूर्ण राजकीय क्षेत्र हुआ करता था.
राम जानकी मंदिर में श्रद्धालुओं की आवाजाही लगातार बनी रहती है. स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के जिलों और पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में लोग मंदिर पहुंचते हैं. धार्मिक आयोजनों और विशेष पर्वों पर यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर न केवल पूजा-अर्चना का केंद्र है, बल्कि यह क्षेत्र के लोगों की सांस्कृतिक पहचान और भावनाओं का भी मुख्य केंद्र बन चुका है.

