शिब्ली अकादमी: एक ऐतिहासिक धरोहर जो आज भी ज्ञान का जीवंत प्रतीक है
आजमगढ़ की शिब्ली अकादमी पूर्वांचल की एक महत्वपूर्ण धरोहर है, जो पूरे भारत के लिए एक ऐतिहासिक स्थल है. 1914 में स्थापित यह शिक्षा संस्थान आज भी ज्ञान, इतिहास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है. यहां बने म्यूजियम में 100 साल से अधिक पुरानी पांडुलिपियां, हस्तलिखित ग्रंथ और महात्मा गांधी का खत जैसी अनमोल धरोहरें आज भी सुरक्षित रखी गई हैं.
शिब्ली अकादमी की स्थापना अल्लामा शिब्ली नोमानी ने 1914 में की थी. उनका उद्देश्य था कि शिक्षा, साहित्य और शोध को एक नए स्तर पर पहुंचाया जाए. शुरुआती दिनों में यहां सिर्फ कुछ दर्जन किताबें थीं, लेकिन समय के साथ इसका विस्तार हुआ और आज यह लाइब्रेरी डेढ़ लाख से अधिक पुस्तकों का भंडार बन चुकी है. अकादमी की स्थापना से आजमगढ़ ने शिक्षा जगत में एक नई पहचान हासिल की है.
म्यूजियम में आज भी जिंदा हैं 100 साल पुराने दस्तावेज़
शिब्ली अकादमी के म्यूजियम में आज भी सौ साल से ज्यादा पुरानी वस्तुएं संरक्षित हैं. यहां शिब्ली नोमानी की हस्तलिखित किताबें अरबी और फारसी भाषा में मौजूद हैं. कुछ किताबें ऐसी भी हैं जिनका अनुवाद दुनिया के कई देशों में किया गया और वहां की यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई जाती हैं. यही नहीं, इस म्यूजियम में महात्मा गांधी का उर्दू में लिखा गया खत भी मौजूद है, जो अकादमी के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता है.
कलम, पांडुलिपियां और ऐतिहासिक दस्तावेज़ बने आकर्षण का केंद्र
मौलाना शिब्ली नोमानी के निजी जीवन से जुड़ी वस्तुएं जैसे उनकी कलम, स्याहीदान और अन्य लेखन सामग्री भी इस म्यूजियम में रखी गई हैं. साथ ही उनके शिष्यों और दारुल मुसन्नीफीन के लेखकों की पांडुलिपियां और हस्तलिपियां यहां के मुख्य आकर्षण हैं. इन पांडुलिपियों के माध्यम से उस दौर की लेखन शैली और विचारधारा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
स्कॉलर्स और शोधार्थियों के लिए ज्ञान का भंडार
शिब्ली अकादमी का यह म्यूजियम शोधार्थियों, इतिहासकारों और साहित्य प्रेमियों के लिए खजाने से कम नहीं है. देश-विदेश से आए स्कॉलर्स यहां अध्ययन के लिए आते हैं और इस ऐतिहासिक धरोहर का अवलोकन करते हैं. यह म्यूजियम न केवल आजमगढ़ की पहचान है, बल्कि यह भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत का भी अहम हिस्सा बन चुका है.

