बहराइच जिले के महसी क्षेत्र के गाँव पूरे प्रसाद सिंह और आसपास के कई गांव हर साल बाढ़ के पानी से त्रस्त रहते हैं। इन इलाकों में बाढ़ का प्रकोप इस कदर होता है कि लोगों का रहना-खाना, आना-जाना सब कुछ असंभव सा हो जाता है। पिछले 10 सालों से इसी हालात में रह रही 65 वर्षीय गायत्री देवी की कहानी आज भी लोगों के संघर्ष की जिंदा मिसाल है।
गायत्री देवी बताती हैं कि जब बाढ़ का पानी पूरे गांव में भर जाता है, तो बाजार तक पहुंचना किसी युद्ध से कम नहीं होता। गांव से बाजार की दूरी करीब 5 से 6 किलोमीटर है, लेकिन इसमें भी दो किलोमीटर का रास्ता पूरी तरह जलमग्न रहता है। ऐसे में वह हाथ में डंडा लेकर पानी में धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हैं ताकि गहराई का अंदाजा लग सके और गिरने का खतरा न हो। इस सफर को तय करने में करीब तीन घंटे लग जाते हैं। बाजार पहुंचकर वह साग-सब्जी, मिर्च-मसाला जैसी जरूरी चीजें जुटाती हैं और फिर उतना ही लंबा सफर तय कर घर लौटती हैं। इस तरह सुबह से निकली गायत्री देवी को शाम तक लौटने में छह घंटे लग जाते हैं। यही दिनचर्या बाढ़ के दिनों में उनकी मजबूरी बन जाती है।
दस साल से जारी संघर्ष गायत्री देवी का कहना है कि यह समस्या कोई नई नहीं है। पिछले 10 सालों से हर साल बाढ़ आती है और यही स्थिति दो से ढाई महीने तक बनी रहती है। इस दौरान उठना-बैठना, खाना बनाना, बच्चों और मवेशियों की देखभाल करना बेहद मुश्किल हो जाता है। कई बार पानी इतना बढ़ जाता है कि घर के भीतर भी रहना दिक्कतभरा हो जाता है। उन्होंने बताया कि गलती से पैर फिसल जाए तो गिरने और चोट लगने का खतरा हमेशा बना रहता है। गांव के लोग मजबूरी में पानी से होकर ही बाजार तक पहुंचते हैं।
भोली-भाली गायत्री की सरल मांग जब लोगों ने गायत्री देवी से उनकी समस्या का समाधान पूछा तो उनका जवाब बेहद सीधा और मार्मिक था। उन्होंने कहा कि अगर गांव में ही सब्जी की दुकान खुल जाए तो बाजार जाने की नौबत ही न आए। उनकी यह मांग बताती है कि गांव के लोग कितनी छोटी-सी सुविधा से भी राहत पा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार चाहे तो बाढ़ आने से पहले गांव के लोगों को ऊंचे स्थान पर अस्थायी आशियाने बनवाकर दे सकती है। वहां पर ग्रामीण दो-ढाई महीने आराम से रह सकेंगे और बाढ़ का सामना करना आसान हो जाएगा।
ग्रामीणों की सामूहिक पुकार गांव के अन्य लोग भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। उनका कहना है कि बाढ़ के दिनों में बच्चे, महिलाएं और मवेशी सभी परेशानी में रहते हैं। खाने-पीने से लेकर इलाज और शिक्षा तक सब प्रभावित होता है। घाघरा नदी के किनारे बसे महसी, नानपारा, मोहिपुरवा और कैसरगंज तहसील के गांव हर साल इसी त्रासदी का सामना करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी चाहिए। अगर समय रहते ऊंचे स्थान पर स्थायी या अस्थायी मकान बनाए जाएं तो हर साल की यह त्रासदी कम हो सकती है।
तराई क्षेत्र की स्थायी समस्या बहराइच का इलाका तराई क्षेत्र में आता है और यहां घाघरा नदी का प्रवाह हर साल गांवों को जलमग्न कर देता है। बाढ़ नियंत्रण और बचाव योजनाएं अक्सर कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। ऐसे में गांव के आम लोग खुद संघर्ष करके जिंदगी काटते हैं। गायत्री देवी जैसी महिलाएं न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए साहस की मिसाल बन जाती हैं।