सनन्दन उपाध्याय/बलिया: आज हम आपको बलिया के एक ऐसे भूतपूर्व सैनिक से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने तमाम मेडल प्राप्त किए हैं. सन 1965 और 1971 दोनों लड़ाई में इस भूतपूर्व सैनिक ने अहम भूमिका निभाई है. ये वही बलिया के बुजुर्ग सैनिक हैं, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध को न केवल अपने आंखों से देखा बल्कि, लड़ाई भी लड़ी और लड़ाई इतनी जोरदार रही कि पाकिस्तानी सैनिक घुटने टेकने को मजबूर हो गए. आज भी यह भूतपूर्व सैनिक देश के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं बलिया जनपद के रहने वाले कामता प्रसाद सिंह की, जिनका कहना है कि फौजी कभी बुड्ढा नहीं होता है, मरने के बाद भी लोग कहते हैं देखो फौज का जवान जा रहा है.
भूतपूर्व सैनिक 81 वर्षीय हवलदार कामता प्रसाद सिंह ने कहा कि वह बलिया जनपद के दुबहड़ गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ी है. कहां कि इन दोनों लड़ाई में पाकिस्तान को धूल चटा दिया गया था. 1971 में तो 93 हज़ार दुश्मनों को कैद कर लिया था. पाकिस्तान हिंदुस्तान से कभी जीत नहीं सकता है. कहा कि पाकिस्तान बिल्कुल डरपोक है.
बलिया के कामता प्रसाद सिंह ने लड़ी थी 1965 की लड़ाईउन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने 1965 के युद्ध में भारत के खिलाफ पंजाब से कश्मीर तक मोर्चा खोला, तब भारतीय सेना ने रणनीति बनाकर सफलता पा ली. कहा कि जो खुद मरना जानता है, वही किसी को मार सकता है. हिंदुस्तान कभी हार नहीं सकता है. सन 1965 और 1971 दोनों लड़ाई में पाकिस्तान ने घुटने टेक दिया था. उन्होंने कहा कि कभी-कभी ब्लैक आउट हो जाता था, तो अंधेरे में ही मार्च किया जाता था. अभी भी यह भूतपूर्व सैनिक अंधेरे में ही मार्च करते हैं, प्रकाश नहीं ढूंढते हैं.
1971 में तो पाकिस्तानी सैनिकों ने खड़े कर दिए थे हाथभूतपूर्व सैनिक ने बताया कि साल 1971 की भारत और पाकिस्तान की लड़ाई की तैयारी पहले से की गई थी. उनके जनरल अरोड़ा साहब थे. बताया कि 1971 में वह बांग्लादेश में पोस्टेड थे. वहां के अगरतला से मार्च करके और ढाका पहुंच गए थे. यहां लड़ाई के दौरान दुश्मनों को तेरह दिन के अंदर घुटने टेकने पड़े थे. उस वक्त पाकिस्तान के पूर्व कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के पूर्वी कमान जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की मौजदूगी में भारत के आगे 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ सरेंडर यानी हाथ खड़े कर दिए थे.
फौजी कभी बुड्ढा नहीं होता
उन्होंने कहा कि फौजी कभी बुड्ढा नहीं होता है. मरने के बाद भी लोग कहते हैं कि देखो फौज का जवान जा रहा है. कहा कि अगर आज भी देश पुकारेगा तो वह लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. लड़ाई के दौरान सायरन बजाया जाता था. जिसको सुनकर सभी सैनिक छुप जाते थे. लड़ाई में सैनिकों का अपना कोड वर्ड होता है, जो डेली बदलता है. वहीं भूतपूर्व सैनिक की पत्नी राम प्रेमी ने बताया कि हमारे पति आज भी देश के लिए लड़ने को तैयार हैं और वह कभी उनको देश हित में लड़ाई के लिए नहीं रोकेंगे.
1971 की लड़ाई में बंद कर देते थे लोग घरों की लाइट, क्यों?…
भूतपूर्व सैनिक सूबेदार अंगद सिंह ने कहा कि मॉक ड्रिल कराया जाता है. यह एक तरह का रिहर्सल होता था कि जैसे हवाई हमला हो गया, तो ब्लैक आउट करना होगा. रात को इस दौरान सबको बताया जाता था कि अगर हवाई जहाज उड़ रहे हैं, तो आप लोग कैसे छिपेंगे. ब्लैक ऑउट के दौरान रात को बिजली और दीपक न जलाएं. सन 1971 की लड़ाई में कहीं रोशनी नहीं जलाई जाती थी. सब काम रात के अंधेरे में ही लोग करते थे, ताकि हवाई हमला न हो सके.