Sunil Gavaskar habit on ground: महान बल्लेबाजों में शुमार सुनील गावस्कर ने कई रिकॉर्ड बनाए और तोड़े. वह जब मैदान पर होते तो क्रिकेट फैंस उनके शॉट देखने को बेताब रहते. हर खिलाड़ी को कुछ आदत होती हैं. ऐसी ही एक आदत सुनील गावस्कर को भी थी और मैदान पर वह कभी स्कोरबोर्ड नहीं देखते थे. अपने करियर में 13,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय रन बनाने वाले गावस्कर ने कहा है कि उन्होंने बल्लेबाजी करते समय कभी स्कोर बोर्ड नहीं देखा.
कभी नहीं देखा स्कोरबोर्ड
इस दिग्गज ने कहा कि क्रीज पर कभी उन्होंने कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया. टेस्ट मैच में उनका मकसद हमेशा सेशन दर सेशन बल्लेबाजी करना था, खेल की शुरुआत से लेकर स्टंप्स होने तक. गावस्कर ने एबीपी ग्रुप द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘जब मैं बल्लेबाजी कर रहा होता तो कभी स्कोरबोर्ड नहीं देखता था. हर बल्लेबाज का लक्ष्य निर्धारित करने का अपना तरीका होता है. छोटे लक्ष्य वो होते हैं जो कोच आपको सबसे पहले बताते हैं. 10, 20 और 30 रन तक पहुंचना, जो एक अच्छा तरीका है.’
लक्ष्य हासिल करने के ऐसे थे तरीके
उन्होंने आगे कहा, ‘जिस तरह से मैं देखता था कि अगर मेरा लक्ष्य 30 तक पहुंचना हो तो जब मैं 24-25 के आसपास कहीं भी पहुंच जाता तो मैं बहुत चिंता में रहता. 30 रन तक पहुंचने की कोशिश करता. फिर मैं स्टंप से बाहर की गेंद को खेलता, बाउंड्री मारने की कोशिश करता, 26 रन के आसपास आउट हो जाता, उस बाउंड्री को हिट करने की कोशिश में जो मुझे 30 रन पर पहुंचा देती.’
बैडमैन का रिकॉर्ड तोड़ा लेकिन…
गावस्कर ने कहा कि विशेष लक्ष्य को हासिल करने के दबाव को कम करने के लिए हर गेंद को उसकी मेरिट के आधार पर खेलना चाहिए. एक दिलचस्प किस्सा साझा करते हुए गावस्कर ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं चला कि उन्होंने कब सर डॉन ब्रैडमैन के 29वें टेस्ट शतक की बराबरी कर ली क्योंकि उन्हें स्कोर बोर्ड देखने की आदत नहीं थी. उन्होंने कहा, ‘जब तक (दिलीप) वेंगसरकर ने आकर मुझे इस उपलब्धि के बारे में नहीं बताया तब तक मुझे कुछ पता नहीं था.’ गावस्कर ने नई दिल्ली में वेस्टइंडीज के खिलाफ 1983 में ब्रैडमैन के 29 टेस्ट शतकों के रिकॉर्ड की बराबरी की.
हर बार शतक
गावस्कर ने आगे कहा कि उनका उद्देश्य हर बार बल्लेबाजी करते हुए शतक बनाना था. उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने विकेट पर जो इनाम रखा वह हमेशा 100 रन था. मैं हमेशा शतक बनाता चाहता था, मैं कम से कम इतना ही हासिल करना चाहता था… जाहिर तौर पर यह असंभव था, यहां तक कि सर डॉन ब्रैडमैन भी हर पारी में ऐसा नहीं कर सकते थे. तो मेरा पूरा ध्यान सत्र में बल्लेबाजी करना था. पहले सत्र से लंच तक, फिर चाय तक और फिर खेल के अंत तक.’ (Input: PTI)
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