पीलीभीत के जंगलों में रहा था कुख्यात सुल्ताना डाकू
पीलीभीत। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के जंगलों को टूरिज्म के लिहाज से काफी अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन इतिहास के कुछ दौर ऐसे भी रहे हैं जिनमें ये जंगल बड़े राजाओं से लेकर आतंक का पर्याय बने लोगों की शरणस्थली भी रहा है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कुख्यात सुल्ताना डाकू भी एक दौर में ब्रिटिश सरकार से बचने के लिए पीलीभीत में रहा है।
सुल्ताना डाकू की छवि आम लोगों के बीच राबिनहुड जैसी थी। वह अमीरों को लूटकर गरीबों को धन बांटता था। इस कारण सुल्ताना डाकू से अंग्रेजी हुकूमत और धन्ना सेठ आतंकित रहते थे। सुल्ताना डाकू को दिसंबर 1923 में नजीबाबाद के पास गिरफ्तार किया गया था। उसकी गिरफ्तारी के दौरान का एक दुर्लभ फोटो आज भी चर्चित है, जिसमें सुल्ताना कद-काठी से सामान्य इंसान लग रहा है।
नैनीताल की अदालत में सुल्ताना डाकू पर मुकदमा चला और उसे फांसी की सजा सुनाई गई। शिकारी और लेखक जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक ‘माई इंडिया’ में ‘सुल्ताना डाकू का जिक्र किया है और उसे ‘इंडियन रॉबिनहुड’ नाम दिया है। तराई के जंगलों में था डाकू सुल्ताना का खौफ।
डाका डालने के बाद सुल्ताना तराई के जंगलों में शरण लेता था। जिस तरह एक दौर में बुंदेलखंड की चंबल घाटी में बागियों की दहशत थी ठीक उसी तरह तराई के जंगलों में सुल्ताना डाकू के नाम का खौफ देखा जाता है। लगातार बढ़ते आतंक को देखते हुए ब्रिटिश पुलिस पर भी सुल्ताना को पकड़ने का दबाव बढ़ गया था।
नैनीताल के कालाढूंगी के जंगलों में लगातार हो रही छापेमारी के चलते सुल्ताना डाकू तराई की पूर्वी सरहद पर बसे पीलीभीत आ पहुंचा। लगभग 2 सालों के दौरान सुल्ताना ने पीलीभीत के जंगलों में ही शरण लेते हुए बड़ी बड़ी डकैतियों को अंजाम दिया था। लेकिन समय बीतने के साथ ब्रिटिश पुलिस अधिकारी फ्रेडी यंग को वर्ष 1923 में सुल्ताना डाकू को पकड़ने में सफलता मिली, और वर्ष 1924 में उसे फांसी दे दी गई।
30 साल की उम्र में बना आतंक का पर्याय
सुल्ताना डाकू पर अलग-अलग समय में कई किताब और फिल्में बनाई गई। वैसे सुल्ताना डाकू को लेकर अलग-अलग कथाएं प्रचलित है, मगर उससे जुड़ी सटीक जानकारी बहुत ही कम मिलती है। मगर 30 साल की उम्र में ही सुल्ताना डाकू आतंक का पर्याय बन चुका था। लगातार हुई वारदातों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे 30 साल की उम्र में ही फांसी दे दी थी।

