सनन्दन उपाध्याय/बलिया: कहते हैं मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं होता है बल्कि उसका नियंत्रणकर्ता होता है. कुछ लोग दयनीय परिस्थितियों को अपने असफलता का कारण मानते हैं लेकिन लगन, मेहनत और परिश्रम में दम हो तो सफलता कदम चूमती है. ये बातें बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के कुलपति पर सटीक बैठ रही है. आर्थिक स्थिति से कमजोर और साधारण परिवार में जन्मे जेएनसीयू के कुलपति प्रो. संजीत कुमार गुप्ता के सफलता की कहानी संघर्षों से भरी रही है.

जेएनसीयू के कुलपति प्रोफेसर संजीत कुमार गुप्ता ने लोकल 18 से कहा, ‘आर्थिक स्थिति से कमजोर एक साधारण परिवार का रहने वाला हूं. मेरी शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से हुई. मैंने सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी सफलता मिलेगी. अगर यह ठान लिया जाए कि मुझे कुछ करना है तो वहां किसी प्रकार की कोई स्थिति बाधा नहीं बन सकती है. सफलता जरूर मिलती है’.

गांव के प्राइमरी स्कूल से शुरू हुई कहानीजननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बसंतपुर बलिया के कुलपति संजीत कुमार गुप्ता ने लोकल 18 से अपनी सफलता के बारे में आगे कहा,  ‘मैं बहुत बड़े शहर और आर्थिक स्थिति से संपन्न परिवार का नहीं हूं. मैं एक साधारण परिवार से हूं. आजमगढ़ में स्थित एक छोटा सा आरोला बाजार है जहां का मैं रहने वाला हूं. यहीं पर मेरा जन्म हुआ था. चुकी परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी इसलिए वहां के प्राइमरी स्कूल में मैंने अपना अध्ययन शुरू किया यह जरूर था कि मैं अध्ययन के दौरान एक अच्छा स्थान पता गया. गांव से ही मैंने इंटर भी किया. वहीं पर बगल के ही एक कटवागंजी में शिव शंकर सिंह महाविद्यालय था जहां से मैंने पढ़ाई की’.

सोचा भी नहीं थी कि मैं कुलपति बनूंगाउन्होंने आगे कहा, ‘उस दौरान मेरे मन में यह भाव नहीं था कि मैं कुलपति भी बन जाऊंगा. निश्चित रूप से यह हमारे माता-पिता, परिजनों, मित्रों और गुरुजनों का आशीर्वाद मिला है तो मैं इस कदम में धीरे-धीरे आगे बढ़ता चला गया.

आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण ऐसे किया प्रयास…उन्होंने आगे कहा, ‘फिर गांव से पढ़ाई संपन्न करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से मैंने पीएचडी किया. वहीं मुझे ध्यान आया कि मैं और कुछ बेहतर कर सकता हूं. मेरे गांव में कोई अधिकारी बनता था तो जश्न का माहौल होता था 10 से 15 किलोमीटर के क्षेत्र में लोग खुशियां मनाते थे. घर की स्थिति सही नहीं थी इसलिए बहुत बड़ा कुछ बनने का जिद न करते हुए सन 1996 में मुझे वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में मेरी पहली सेवा स्थाई रूप से लेक्चर के पद से प्रारंभ हुई’.

जीवन में संकल्प और अच्छी संगत का महत्वकुलपति संजीत कुमार गुप्ता ने कहा, ‘संकल्प और अच्छी संगत निश्चित रूप से आदमी को लक्ष्य तक पहुंचाने में बहुत मदद करती है. धैर्य और निरंतता बहुत जरूरी है. मेरे जीवन में बहुत कठिनाई आई लेकिन मैं प्रयास करना नहीं छोड़ा और सफलता भी खूब मिलती गई. मैं आईएएस पीसीएस की तैयारी करना चाहता था लेकिन उसका फीस बहुत ज्यादा था इसलिए मैं नहीं कर पाया. मैंने अपने जीवन में एक चीज देखा कि अगर कुछ करने का निर्णय ले लिया गया और हर समय दिमाग में वहीं चलता है तो संसाधन भी पीछे छूट जाते हैं और सफलता के मार्ग अपने आप प्रशस्त होते जाते हैं’.

छात्रवृत्ति भी बढ़ाती थी हौसलाउस समय छात्रवृत्ति लगभग 1200 या 800 के करीब मुझे कई बार मिली. ये पैसे उस समय कीमत रखते थे और छात्रवृत्ति जब मिलती थी तो संसाधन पूरे होते थे. किताब मिल जाती थी लगता था कि मेरा सपना पूरा हो रहा है. छात्रवृत्ति का छात्र जीवन में बड़ा महत्व है.
.Tags: IAS, Job and career, Local18FIRST PUBLISHED : March 9, 2024, 12:18 IST



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