विशाल भटनागर/मेरठ. भविष्य को बनाने के लिए जब छात्र दूरदराज किसी विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने के पश्चात हॉस्टल आते हैं, तो अनेकों प्रकार के सवाल मन में होते हैं, क्योंकि पहले कभी परिवार से इतनी दूर नहीं आए होते. हालांकि, जब हॉस्टल में आकर पढ़ाई करते हैं, सहपाठियों का सहयोग मिलता है, तो जिस परिवार को वह सैकड़ों किलोमीटर दूर छोड़कर आते हैं, उन्हीं के रूप में हॉस्टल में सहपाठी मिल जाते हैं. यह बातें पढ़ाई पूरी होने के बाद हॉस्टल छोड़ रहे सर छोटू राम इंजीनियरिंग परिसर स्थित सर डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम हॉस्टल में रह रहे छात्रों ने कही.छात्र शैलजाकांत शुक्ला कहते हैं कि जब गोरखपुर से मेरठ आए तो मन में काफी सवाल थे, क्योंकि सभ्यता और संस्कृति में काफी अंतर है, लेकिन जब अन्य जनपदों के भी सहपाठी मिले तो धीरे-धीरे उन सभी में अपना परिवार दिखने लगा. वह बताते हैं कक्षाओं के दौरान कुछ भी समझ में नहीं आता तो सीनियर से रात को 1:00 बजे पूछने जाते तो वह उस समय भी अच्छे से समझाते हैं.सभी के साथ खाना-रहना है एक बेहतर संदेशदिव्यांश मिश्रा कहते हैं कि भले ही आज भी राजनीतिक तौर पर जातिवाद की बात होती है, लेकिन जब हॉस्टल में रहते हैं, तो सभी जाति धर्म के सहपाठी हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं. इसी तरीके से हॉस्टल में रहने वाले सुरेश कहते हैं कि वह बांदा के रहने वाले हैं. हॉस्टल में रहना उनके लिए एक अच्छा अनुभव है. शुरुआती दौर में जब वे हॉस्टल आए तो वह काफी डरते थे, क्योंकि जिस तरीके से सीनियर और जूनियर को लेकर बातें होती हैं, वह हमेशा डर में रहते थे, लेकिन यहां जो भी कुछ देखा अनोखा था.हॉस्टल छोड़ते हुए भावुक हुए स्टूडेंटबताते चलें कि बीटेक  की पढ़ाई पूरी होने पर स्टूडेंट हॉस्टल छोड़ रहे थे, इस दौरान सब एक दूसरे से गले मिलकर रोते हुए भी दिखाई दिए. उन छात्रों को कहना था कि भले ही हम अलग-अलग जनपदों के रहने वाले हो. लेकिन जिस तरीके से एक साथ समय बिताया है. परिवार से दूर रहने का एहसास नहीं हुआ और आज जब बिछड़ रहे हैं. तो उन्हें काफी दुख हो रहा है. गौरतलब है कि सर छोटू राम इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक करने के लिए मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, बांदा सहित अन्य राज्यों के छात्र-छात्राएं भी आते हैं, जिनके लिए कैंपस में ही विभिन्न हॉस्टल भी संचालित किए जाते हैं..FIRST PUBLISHED : June 07, 2023, 09:55 IST



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