गाजीपुर में सिविल इंजीनियर ने तैयार की जैविक खाद, केले के पेड़ झूमे
गाजीपुर। गाजीपुर के गोरा बाज़ार पीजी कॉलेज के पास रहने वाले मनोज सिंह कुशवाहा ने अपने खेत में केले की खेती शुरू की है। मनोज ने करीब 24 बिस्वा (लगभग 1 बीघा) ज़मीन पर केले की खेती शुरू की है। उन्होंने आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक सलाह के लिए प्रगतिशील किसान सुनील कुशवाहा का मार्गदर्शन लिया। मनोज की पत्नी रंजीता ने खुद पौधे लगाए, ट्रैक्टर चलाया और प्लांटेशन में हाथ बंटाया। इस दौरान दोनों ने कुल 1000 केले के पौधे लगाए जिनमें से 835 पौधे जीवित हैं।
मनोज हर पौधे को बच्चे जैसा मानते हैं और रोज़ 10–15 मिनट उन पर समय देते हैं। पौधों के बीच 5–6 फीट की दूरी रखी गई ताकि ग्रोथ सही हो। मनोज ने केले के पौधों को स्वस्थ रखने के लिए नीम की खली, गोबर, गुड़ और सरसों की खली से ऑर्गेनिक खाद तैयार की। सरसों की खली और गुड़ को 2–3 दिन पानी में भिगोकर फर्मेंट किया गया। इससे बनी तरल खाद पौधों की ग्रोथ और फल-फूल के लिए बेहद असरदार साबित हुई।
जब केले की पत्तियां गर्मी में जलने लगीं तो यूरिया और सरसों की खली का संतुलित प्रयोग किया गया। बिजली चोरी के बजाय सोलर पंप और जनरेटर लगाकर पौधों को नियमित पानी दिया गया। मनोज की मेहनत रंग ला रही है। उनके खेत में लगे केले के पौधों पर फल आ चुके हैं और 15 सितंबर तक कटाई शुरू हो जाएगी। एक केले का गुच्छा 20 से 25 किलो का है और कुछ गुच्छे तो 30 किलो तक जा सकते हैं।
मनोज बताते हैं कि केले के पकने की पहचान आसान है। जब गुच्छे पर हल्का पीलापन आने लगे और फल फटने जैसा दिखे तो समझ लीजिए कटाई का समय आ गया। वे कहते हैं कि सफेद तनों वाला पौधा स्वस्थ माना जाता है और यही हमारी मेहनत की सबसे बड़ी सफलता है।