हाइलाइट्समेरठ की फातिमा 2016 में एक भीषण कार एक्सीडेंट का शिकार हो गई थीं. फातिमा का कहना है कि उसकी हड्डियां टूटी थीं हौसला नहींइंटरनेशनल स्तर पर चीन में आयोजित हुए ग्रांड प्री प्रतियोगिता में ब्रांज मेडल जीतामेरठ. अगर किसी का भयानक एक्सीडेंट हुआ हो, शरीर में 196 घाव हुए हों, ग्यारह प्लेट पड़ी हो शरीर का कोई अंग टूटे बिना बचा न हो. कई महीनों तक कोमा में रहा हो, तो उसके बारे में हर व्यक्ति यही कहेगा कि भगवान ही उसका सहारा होगा लेकिन मेरठ की रहने वाली एक खिलाड़ी की ईश्वर और उसके हौसले ने ही मदद की. ये कहानी है पैरा खेलों की चैंपियन फातिमा की.
मेरठ की एक फौलादी दिव्यांग खिलाड़ी ने अपने हौसले से वो मुकाम हासिल किया है जो असंभव लगता है. कभी भीषण हादसे का शिकार हुई इस फौलादी खिलाड़ी को कई महीनों तक कोमा में रहना पड़ा था. कोमा से निकलने के बाद मेरठ की रहने वाली फातिमा में दूसरी फातिमा का जन्म हुआ और फिर एक-एक करके उसने खेल की दुनिया में मेडल की झड़ी लगा दी. कई वर्षों के निरंतर प्रयास कई इंटरनेशनल और नेशनल मेडल जीतने के बाद अब फातिमा ने पैरालंपिक का टिकट हासिल किया है.
फातिमा ने नार्थ अफ्रीका के मोरक्कों में आयोजित ग्रैंड प्रिक्स डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीत लिया साथ ही छठी अंतर्राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स मीट में फातिमा ने दो पदकों के साथ 2024 पैरिस पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई करने के साथ वर्ल्ड चैंपियनशिप दो हज़ार तेईस व एशियन गेम्स में जगह पक्की कर ली. अब वो एशिया की दूसरी नम्बर की खिलाड़ी बन गई हैं. मेरठ की फातिमा 2016 में एक भीषण कार एक्सीडेंट का शिकार हो गई थीं. इस दौरान उनके शरीर में 196 घाव हुए थे और कई महीने कोमा में रही थीं.
इसके बाद भी उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और डिस्कस थ्रो शॉटपुट में कई पदक जीतकर अपना जज्‍बा दिखाया है. कोमा के बाद जब फातिमा को होश आया था तो उसने खुद को व्हील चेयर पर पाया. बावजूद इसके इस खिलाड़ी के हौसले कम नहीं हुए. खेलों में मुकाम तलाशा और पैरा खेलों में उसने राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते. फिर अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भी भारत का तिरंगा शान से लहराया.आज की तारीख में भी ये खिलाड़ी स्टेडियम में पसीना बहाती हुई नजर आती है.
फातिमा के सपने उड़ान भर रहे थे लेकिन उसकी जिन्दगी में ऐसा तूफान आया कि सब कुछ तहस नहस हो गया. फातिमा एक भीषण कार एक्सीडेंट का शिकार हो गई. हादसा ऐसा कि शरीर में एक सौ छियानवे घाव हुए. कई महीनों तक वो कोमा में रही. एक साल तक वो बिस्तर से उठ नहीं पाई, लेकिन हिम्मत देखिए एक साल बाद जब फातिमा उठी तो फिर उठ खड़ी हुईं. सीधा खेल के मैदान में पहुंच गई. फातिमा ने खेलों की दुनिया में अपना मुकाम तलाशना शुरू किया वो डिस्कस और शॉटपुट खेल खेलने लगीं.
हिम्मत लगन और हौसले का परिणाम देखिए. चंद महीनों में ही वो स्टेट चैंपियन और फिर नेशनल चैंपियन बन गईं. यही नहीं, उन्‍होंने फिर इंटरनेशनल स्तर पर चीन में आयोजित हुए ग्रांड प्री प्रतियोगिता में ब्रांज मेडल जीता. बिजली विभाग में स्टेनोग्राफर के पद पर तैनात इस बेटी ने कभी सोचा नहीं था कि वो खेलों की दुनिया में अपना करियर बनाएगी, लेकिन किस्मत को शायद यही मंजूर था. पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उसकी नौकरी लग गई थी, लेकिन 2016 में उसके साथ ऐसा हादसा हुआ. उसकी पूरी दुनिया ही बदल गई.
शरीर में एक सौ छियानवे टांके लगे. घर वाले फातिमा के ज़िन्दा रहने की उम्मीद छोड़ चुके थे. हादसे के बाद उसके दोनों हाथों और पैरों में रॉड डाली गई. रॉड के माध्यम से नौ जगह बोल्ट लगाए गए. फातिमा व्हील चेयर पर आ गईं, लेकिन कहते हैं न कि गुरु आपकी ज़िन्दगी बदल सकता है. फातिमा को संघर्ष के दिनों में गौरव त्यागी जैसे कोच मिले, जिन्होंने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसे अंतर्राष्ट्रीय फलक तक पहुंचा दिया.
सड़क हादसे के पहले फातिमा का खेलों से कोई नाता नहीं था. हादसे के बाद वो कभी कभी ऑफिस से निकलते वक्त भामाशाह पार्क आया करती थीं. जुलाई 2017 को उनकी मुलाकात गौरव त्यागी से हुई. गौरव ने उन्हें पैरा खेलों में भाग्य आजमाने को कहा. आज फातिमा आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं और यही उनकी ताकत है. फातिमा को देखकर कई और दिव्यांग पैरा खिलाड़ी मेरठ के कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में प्रैक्टिस करते दिख जाते हैं. फातिमा ने 2018 में आयोजित पैरा स्टेट प्रतियोगिता में एक साथ तीन गोल्ड मेडल जीते थे.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Inspiring story, Meerut city news, Paralympic Games, Sports news, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : September 17, 2022, 14:07 IST



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