सहारनपुर की लकड़ी की नक्काशी: भारत की सांस्कृतिक धरोहरों में सहारनपुर की वुड कार्विंग कला एक अनमोल धरोहर है, जिसने लकड़ी को सुंदर रूप देने के साथ-साथ भारत की पारंपरिक कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिलाई है. यह कला शिवालिक पर्वतमाला की गोद में बसे सहारनपुर जिले के कारीगरों ने अपनी नक्काशी से निखारी है, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुकी है.
सहारनपुर जिले का इतिहास
सहारनपुर जिले का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है, जब ब्रिटिश शासनकाल में यहां से लकड़ी का व्यापार बड़े पैमाने पर होता था. ब्रिटिश सरकार ने सहारनपुर वन क्षेत्र को चार भागों सहारनपुर रेंज, मोहंड, बड़कलां, होलखंड और रानीपुर में बांट दिया था. लकड़ी के उद्योग को विकसित करने में ब्रिटिश सरकार की अहम भूमिका रही.
सहारनपुर का लकड़ी उद्योग
सहारनपुर का लकड़ी उद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग है, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है. यह उद्योग लगभग 1,400 से 1,500 करोड़ रुपये वार्षिक कारोबार कर रहा है, जिसमें से 60 प्रतिशत से अधिक व्यापार विदेशों से होता है. सहारनपुर के वुड कार्विंग उत्पादों का निर्यात अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, दुबई, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, रूस और यूक्रेन जैसे देशों में किया जाता है.
सहारनपुर के कारीगर
सहारनपुर के कारीगरों ने अपनी नक्काशी से न केवल लकड़ी को सुंदर रूप दिया, बल्कि भारत की पारंपरिक कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिलाई है. सहारनपुर के वुड कार्विंग कारोबारी रमजी सुजैन के अनुसार, जिले में करीब ढाई हजार से अधिक छोटी-बड़ी इकाइयां कार्यरत हैं, जहां एक लाख से अधिक कारीगर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
सहारनपुर की कला की पहचान
सहारनपुर की कला न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुकी है. सहारनपुर के वुड कार्विंग उत्पादों की गुणवत्ता और सुंदरता ने दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है. सहारनपुर की कला की पहचान न केवल भारत में बल्कि यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों तक पहुंच चुकी है. यहां के कारीगरों के हुनर से न सिर्फ लाखों लोगों को रोजगार मिला है, बल्कि भारत की कला को नई पहचान भी मिली है.

