रिपोर्ट- निखिल त्यागीसहारनपुर. वुडकार्विंग उद्योग के लिए सहारनपुर जनपद देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है. यहां के कारीगरों की नक्कासी दुनिया भर में मशहूर है जो अपनी कलाकारी से छोटे-छोटे लकड़ी के टुकड़ों पर भी शानदार डिजाइन बना देते है. लेकिन अब शीशम की लकड़ी की बढ़ती कमी के कारण इस उद्योग से जुड़े व्यापारियों को विकल्प तलाशने पड़ रहे है. इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मोलिया दुबिया (मालाबार नीम ) की लकड़ी को विकल्प के रूप में चुना है.सैकड़ों वर्षो पुराना वुडकार्निंग उद्योग वर्तमान में कुछ परेशानियों से गुजर रहा है. इसमें सबसे बड़ी परेशानी कच्चे माल यानि लकड़ी के कारण हो रही है. वुडकार्विंग उद्योग अधिक्तर शीशम, सागवान व आम की लकड़ी पर निर्भर है. अच्छी गुणवत्ता युक्त की शीशम की लकड़ी के नही मिलने के कारण उद्योग से जुड़े व्यापारियों को दूसरे राज्यों में इनकी खोज करनी पड़ती है. शीशम की लकड़ी की बढ़ती कमी के कारण इस उद्योग से जुड़े लोगों ने आम की लकड़ी को विकल्प के तौर पर अपनाया था. इस उद्योग के लिए लकड़ी की उपयोगिता को देखते हुए ईपीसीएच ने आम के विकल्प के रूप में दूसरी लकड़ियों को भी तलाश करना शुरू कर दिया है. विभाग इन दिनों मोलिया दुबिया यानि मालाबार नीम पर काम कर रहा है. यानी यह लकड़ी आम और शीशम के विकल्प के तौर पर उद्योग को ऊपर उठाने में कारगर सिद्ध होगी.नहीं बन पाया शीशम का प्लांटेशनवुडकार्निंग उद्योग की विदेशों में पहचान कराने मे यहां की लकड़ी का विशेष योगदान है. लेकिन लकड़ी की समस्या उद्यमियों के कारोबार के सामने समय-समय पर आड़े आती रही है. इस कारण अनेक बार यहां के उधमियों ने जनपद में लकड़ी के डिपो बनाये जाने की मांग सरकार से की है. अपने प्रयास में असफल होते देख वुडकार्विंग मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ने जनपद में खाली पड़ी सरकारी जमीन मे शीशम का प्लांटेशन कराए जाने का प्रस्ताव सरकार को सुझाव के नजरिये से भेजा है क्योंकि शीशम का पेड़ तैयार होने में 40 से 50 वर्ष लगते है और अब कोई इतना इंतज़ार नहीं कर सकता. इसलिए नई पीढ़ी को उद्योग से जोड़े रखने के लिए शीशम का प्लांटेशन कराय जाना ही एकमात्र रास्ता है.16 प्रकार की लकड़ियों पर काम कर रहा है वुडकार्विंग उद्योगईपीसीएच के महानिदेशक डॉ. राकेश कुमार का कहना है कि वुडकाविंग उद्योग में लकड़ी की महत्ता को उधमी जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति की लकड़ियों की योजना पर काम कर रहे है. उन्होंने बताया कि शीशम औऱ आम का विकल्प मोलिया दुबिया लकड़ी बन सकती है. उन्होंने मेलिया दुबिया प्रजाति वाली लकड़ी की खूबियां बताते हुए कहा कि मोलिया दुबिया की लकड़ी आम की लकड़ी से कम सघन होती है. इस प्रजाति का पेड़ 6 साल में परिपक्व होकर पूरा पेड़ बन जाता है. मूलतः इस प्रजाति के बाग हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में मिल जाते है. यहां की जलवायु मोलिया दुबिया प्रजाति के पेड़ के लिए अनुकूल है. उन्होंने बताया कि मोलिया दुबिया पेड़ की औसत ऊंचाई 20 से 25 फ़ीट तक हो जाती है.अब मालाबार की नीम बन रही विकल्पडॉ. राकेश कुमार ने बताया कि मेलिया दुबिया को मालाबार नीम की लकड़ी के रूप में भी जाना जाता है. इस प्रजाति की लकड़ी में दीमक रोधी गुणों के कारण रासायनिक उपचार की आवश्यकता नहीं होती. मेलिया दुबिया वुड का प्रदर्शन प्लानिंग, सैंडिंग, कटिंग, टर्निंग, टेनन, बोरिंग और मोटाइजिंग के तहत बहुत अच्छा रहा है. उन्होंने बताया कि जब इसका पेड़ 3 से 4 वर्ष का हो जाता है तो इसकी लकड़ी कागज, खिलौने, माचिस की तीलियों के निर्माण में उपयोग की जा सकती है. 6 वर्ष से अधिक का पेड़ होने पर इस लकड़ी को फोटो फ्रेम, कम वजन के फर्नीचर, दीवार पैनल, कटोरे आदि का निर्माण करने के लिए उपयोग किया जाता है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Saharanpur news, UP newsFIRST PUBLISHED : November 30, 2022, 17:29 IST



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