विशेषज्ञ समिति के गठन के लिए याचिका दायर की गई है
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन और तेज़ बहाव के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिए एक कार्य योजना और एसआईटी जांच की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास इन आपदाओं को रोकने या कम करने के लिए कोई योजना नहीं है, जिनकी आवृत्ति हाल के दिनों में चिंताजनक रूप से बढ़ गई है।
याचिका में कहा गया है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय ने हिमालयी क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और नदियों की रक्षा करने में असफल रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि यह याचिका सार्वजनिक हित में दायर की गई है ताकि हिमालयी राज्यों के नागरिकों के जीवन के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 21) और न्याय की पहुंच को सुनिश्चित किया जा सके।
याचिका में कहा गया है कि हिमालयी राज्यों में भूस्खलन और तेज़ बहाव के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिए एक独立 विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए जो सभी सड़क और हाईवे परियोजनाओं की जांच करे जहां भूस्खलन हुआ है और नदियों, नालों, धाराओं, जलमार्गों और चैनलों में तेज़ बहाव और फ्लश फ्लड के कारणों का आकलन करे।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र और अन्य को निर्देशित किया जाए कि वे प्रभावित नागरिकों को आपातकालीन सहायता, बचाव, सुरक्षा, प्रथम-चिकित्सा प्रदान करें।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने इस मामले की गंभीरता को देखा है और इसे दो सप्ताह बाद पोस्ट किया जाएगा। याचिका के वकील ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में लोगों को टनलों में फंसने और “मृत्यु के करीब” होने की स्थितियों में आने के कई उदाहरण हैं।
याचिका में कहा गया है कि हिमालयी राज्यों में भूस्खलन और तेज़ बहाव के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिए एक कार्य योजना और एसआईटी जांच की आवश्यकता है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास इन आपदाओं को रोकने या कम करने के लिए कोई योजना नहीं है, जिनकी आवृत्ति हाल के दिनों में चिंताजनक रूप से बढ़ गई है।