सब्जी के बहाने 29 लोगों का नरसंहार! कटरुआ के पीछे छुपा है पीलीभीत के जंगलों का सबसे बड़ा खौफ

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सब्जी के बहाने 29 लोगों का नरसंहार! कटरुआ के पीछे छुपा है पीलीभीत के जंगलों का

पीलीभीत- उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में इन दिनों बाजारों में कटरुआ सब्जी की खूब बिक्री हो रही है. तराई क्षेत्र के लोग इस अनोखी सब्जी के दीवाने हैं. लेकिन इसी कटरुआ की खुशबू उन लोगों के जेहन में 31 जुलाई 1992 का खौफनाक मंजर भी जगा देती है, जब 29 निर्दोष ग्रामीणों को जंगल में खालिस्तानी आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था.

साल के पेड़ों की जड़ों से निकलती है कटरुआकटरुआ एक विशेष प्रकार की जंगली सब्जी है, जो साल के पेड़ों की जड़ों में बरसात के मौसम में उगती है. इसे पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में खोजने के लिए ग्रामीण जमीन खोदकर इसे निकालते हैं. इसके बाद व्यापारी इसे बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर की मंडियों तक पहुंचाते हैं.

हालांकि इस पर सरकारी प्रतिबंध भी है, लेकिन विभागीय मिलीभगत से यह सिलसिला वर्षों से जारी है. मगर कटरुआ सिर्फ एक सब्जी नहीं, तराई के कई परिवारों के लिए दर्द की याद भी है.

कटरुआ बीनने गए 29 ग्रामीण बने लाशवरिष्ठ पत्रकार तारिक कुरैशी बताते हैं कि 31 जुलाई 1992 को पीलीभीत के शिवनगर और घुंघचाई गांव से 29 ग्रामीण कटरुआ बीनने के लिए माला रेंज के जंगलों में गए थे. शाम तक जब वे वापस नहीं लौटे, तो परिजनों को चिंता हुई. इस समय तक पीलीभीत खालिस्तानी आतंकवाद का अड्डा बन चुका था.

पुलिस ने डर के कारण पहले दिन कार्रवाई नहीं की. लेकिन अगले दिन जब 29 लोगों की गुमशुदगी की सूचना फैल गई, तो अन्य जिलों से फोर्स बुलाकर सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया.

सिंगाघाट में मिले थे 29 शवकई दिनों की खोजबीन के बाद माला रेंज के सिंगाघाट इलाके से सभी 29 ग्रामीणों के शव बरामद हुए. इन सभी को आतंकवादियों ने गोलियों से भून दिया था. इस हत्याकांड को कटरुआ कांड के नाम से जाना गया और यह घटना पूरे देश को हिला देने वाली थी. पैसे की लालच और भूखमरी ने इन ग्रामीणों को जंगल में ले तो गया, लेकिन वे वापस कभी नहीं लौटे.

19 साल चला मुकदमा
कई सालों तक यह मामला अदालतों में चलता रहा. 2011 में साक्ष्यों के अभाव में सभी आरोपी बरी कर दिए गए. यह निर्णय पीड़ित परिवारों के लिए दूसरा आघात था. आज भी इस कांड के परिजन न्याय और जवाबदेही के इंतजार में हैं.

जंगल की चीखें दबती रहींआज जब बाजारों में कटरुआ की बिक्री चरम पर है, तो कई पुराने ग्रामीणों की आंखें नम हो जाती हैं. इस सब्जी का स्वाद उनके लिए अब सिर्फ स्वाद नहीं, एक अनकहा डर है. जो लोग इस घटना को जानते हैं, वो आज भी जंगल की तरफ अकेले नहीं झांकते.

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