आईआईटी कानपुर ने ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों के लिए नई उम्मीद लेकर सामने आया है. यह रोबोट इंसानों की तरह बोल सकता है, चेहरों को पहचान सकता है, बच्चों के हावभाव और हरकतों को कॉपी कर सकता है और 25 दिशाओं में घूमने की क्षमता इसे इंसानी जैसा बना देती है. बच्चों को यह रोबोट डरावना नहीं लगा बल्कि उन्होंने इसे दोस्त की तरह अपनाया और सहज होकर बातचीत करनी शुरू कर दी.
आईआईटी कानपुर के उपनिदेशक प्रो. ब्रजभूषण ने पिछले 17 सालों से लगातार ऑटिज्म और स्पेशल बच्चों की समस्याओं का अध्ययन किया है. उन्होंने देखा कि ऐसे बच्चे जीवित इंसानों की तुलना में मशीनों और निर्जीव वस्तुओं से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं. इसी सोच ने उन्हें एक नए प्रयोग की ओर प्रेरित किया. डीएसटी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग) के सहयोग से उन्होंने प्रो. बिशाख भट्टाचार्य और शोधार्थी वर्तिका के साथ मिलकर यह प्रोजेक्ट शुरू किया और नाओ रोबोट को चुना. नाओ रोबोट छोटा जरूर है लेकिन इसमें कई खासियतें हैं जो इसे इंसानी जैसा बनाती हैं।
शोध की शुरुआत सामान्य बच्चों से हुई. उनके बोलने, हावभाव और भाषा के पैटर्न को रिकॉर्ड किया गया. इन्हीं पैटर्न्स पर नाओ रोबोट को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकों से प्रशिक्षित किया गया. कन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (Awam Ka Sach) रोबोट को सही एक्सप्रेशंस और बातचीत का तरीका सिखाने के लिए. ग्राफिकल न्यूरल नेटवर्क (GNN) बच्चों के चेहरे के छोटे बदलावों को समझने और सही संदेश देने के लिए. जब इन तकनीकों से प्रशिक्षित नाओ रोबोट को ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के साथ जोड़ा गया, तो उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव दिखने लगे. वे बातचीत करने लगे, आत्मविश्वास बढ़ा और सामाजिक कौशल भी विकसित हुए.
शोधार्थी वर्तिका, जिन्होंने अपनी पीएचडी भी इसी विषय पर की है, बताती हैं कि भारत में यह प्रयोग पहली बार हुआ है. विदेशों में कई थेरेपी सेंटरों में ऐसे रोबोट पहले से उपयोग हो रहे हैं, लेकिन भारत में यह एक नया और साहसिक कदम है. कानपुर के विभिन्न केंद्रों में महीनों तक बच्चों को नाओ रोबोट के साथ प्रशिक्षित किया गया और नतीजे उम्मीद से कहीं बेहतर निकले. प्रो. ब्रजभूषण का मानना है कि देश में प्रशिक्षित काउंसलर्स की कमी है. ऐसे में नाओ रोबोट बड़ी मदद साबित हो सकता है. यह बच्चों को लगातार और सुरक्षित माहौल देता है, जहां वे धैर्यपूर्वक सीख सकते हैं. हालांकि, फिलहाल इसकी कीमत अधिक होने से हर केंद्र पर इसे उपलब्ध कराना संभव नहीं है. इसके विकल्प के तौर पर इंटरैक्टिव सत्रों के वीडियो भी बच्चों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
नाओ रोबोट की खासियतें इसे बच्चों के लिए उपयोगी बनाती हैं. इसमें इंसानी रूप-रंग और हरकतें हैं जो बच्चों को आकर्षित करती हैं. यह बच्चों को डराने के बजाय दोस्ताना माहौल देता है. लगातार बातचीत कर सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करता है. आत्मविश्वास बढ़ाने और पढ़ाई से जुड़ने में मदद करता है.