झांसी की वो दो बहनें, जिनकी कहानी आज भी गूंजती है पहाड़ों में
बुंदेलखंड की धरती सिर्फ वीरता की नहीं, बल्कि त्याग और बलिदान की कहानियों से भी भरी है. ऐसी ही एक कथा है दो बहनों कैमासन और मैमासन की. कहा जाता है कि आज जिन दो पहाड़ियों को हम कैमासन और मैमासन के नाम से जानते हैं, उनके पीछे छिपी है इन बहनों की दर्दनाक किंवदंती.
खूबसूरती जो बन गई अभिशाप बहुत समय पहले झांसी के एक छोटे से गांव में कैमासन और मैमासन नाम की दो बहनें रहती थीं. उनकी सुंदरता की मिसाल दी जाती थी. कहा जाता था कि सूरज उनसे जलता था और चांद भी उनकी चमक से शर्मा जाता था. लेकिन यही खूबसूरती उनके लिए अभिशाप बन गई. किंवदंती के अनुसार, दोनों बहनों की सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई. मुगल शासक उनकी सुंदरता से प्रभावित होकर उन्हें पाने की लालसा रखने लगे और उन्हें अपनी ‘मालिकियत’ समझने लगे.
इज्जत बचाने का अंतिम फैसलाजब मुगल सैनिकों ने गांव की ओर कूच किया, तो दोनों बहनों को अपनी अस्मिता पर खतरा महसूस हुआ. बचने का कोई रास्ता न देखकर उन्होंने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान देने का निर्णय लिया. कहा जाता है कि दोनों जंगल की ओर भागीं, लेकिन जब उन्हें वहां भी सुरक्षा नहीं मिली, तो उन्होंने आखिरी बार अपने गांव की ओर देखा और अलग-अलग पहाड़ियों से कूदकर अपनी जान दे दी. उनके इस त्याग ने उन दोनों पहाड़ियों को एक नई पहचान दी, कैमासन और मैमासन पर्वत.
लोगों की आस्था और आज का समयआज भी झांसी और आसपास के लोग मानते हैं कि इन पहाड़ियों पर दोनों बहनों की आत्मा निवास करती है. श्रद्धालु यहां दीप जलाकर पूजा करते हैं और विश्वास करते हैं कि कैमासन-मैमासन उनकी रक्षा करती हैं. वहीं, मंदिर के सेवादारों का कहना है कि यह मंदिर लगभग 1100 साल पुराना है. हालांकि, वे इस कहानी को लोककथा मानते हैं, पर आने वाले श्रद्धालु आज भी इन बहनों की सुंदरता और साहस के किस्से सुनाते हैं.
झांसी की मिट्टी में ऐसी कई कहानियां दबी हैं जो हमें याद दिलाती हैं कि असली सुंदरता चेहरे में नहीं, बल्कि साहस और आत्मसम्मान में होती है. कैमासन और मैमासन की कहानी इस बात की गवाही देती है कि झांसी की बेटियां हमेशा से खूबसूरत ही नहीं, बल्कि निडर और अडिग भी रही हैं.

