Bengaluru Stampede vs Mohun Bagan East Bengal Bloody Battle 1980: भारतीय खेलों के लिए 4 जून 2025 का दिन मनहूस साबित हुआ. रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की आईपीएल जीत के बाद बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में जश्न मनाने के लिए पहुंचे दर्शकों को जान गंवानी पड़ी. खेल के प्रति जुनून और उत्साह दुखद रूप से आपदा में बदल गया. इसमें 11 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए. इस घटना ने 45 साल पुरानी डरावनी याद को ताजा कर दिया. कोलकाता में तब 16 लोगों की जान चली गई थी.
गार्डन सिटी में ईडन गार्डन्स जैसा हादसा
16 अगस्त, 1980 को कोलकाता के ईडन गार्डन्स (तब सॉल्ट लेक स्टेडियम नहीं था) में कट्टर प्रतिद्वंद्वियों मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच फुटबॉल मैच के दौरान समर्थकों के बीच भारी झड़प हो गई थी. इस बार हादसा स्टेडियम में नहीं, लेकिन उसके बाहर जरूर हो गया. 18 साल में पहली IPL जीत के जश्न पर दुख का साया पड़ गया. विराट कोहली की एक झलक पाने को आतुर एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ में भगदड़ मच गई. 1980 में ईडन गार्डन्स में त्रासदी हुई थी और अब बुधवार को ‘गार्डन सिटी’ को दिल दहला देने वाला हादसा झेलना पड़ा.
1980 का ईडन गार्डन्स हादसा
मोहन बागान और ईस्ट बंगाल दोनों ही कोलकाता के फुटबॉल क्लब हैं. दोनों क्लबों का अपना-अपना इतिहास है. मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच मैच को लेकर उत्साह काफी ज्यादा होता है.
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हाथापाई से फैल गया तनाव
16 अगस्त 1980 की दोपहर को ईडन गार्डन्स में 70 हजार से अधिक दर्शक स्टेडियम में उमड़ पड़े थे. मोहन बागान के तेजतर्रार राइट विंगर विदेश बसु को ईस्ट बंगाल के साइड बैक दिलीप पालित ने गिरा दिया. दिलीप पालित अपने आक्रामक टैकलिंग के लिए कुख्यात थे. उस समय की रिपोर्टों के अनुसार, मैच के रेफरी स्वर्गीय सुधीन चटर्जी का मुकाबले पर कोई नियंत्रण नहीं था. एक बार जब विदेश बसु और दिलीप में हाथापाई हुई तो तनाव स्टैंड में फैल गया. दोनों तरफ के दर्शकों ने पथराव करना शुरू कर दिया. कोलकाता पुलिस भीड़ की भगदड़ जैसी स्थिति का अनुमान लगाने में नाकाम रही. लोग घबरा गई और इधर-उधर भागने लगे.
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‘फुटबॉल लवर्स डे’
कुछ लोग ईडन गार्डन्स की दूसरी मंजिल से लटक रहे थे. 18 से 60 साल की आयु के बीच के 16 फुटबॉल फैंस की जान चली गई. अब इसे कोलकाता में ‘फुटबॉल लवर्स डे’ कहा जाता है, लेकिन उस दिन कानून और व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी. ‘सिटी ऑफ जॉय’ में कहीं भी कोई खुशी नहीं थी. अब बेंगलुरु में हुई घटना ने 1980 के हादसे की याद दिला दी.