Uttar Pradesh

पुराने समय के किसान… कैसे करते थे धान की फसल की रक्षा? जानिए आज भी असरदार तरीके

बिना किसी रसायन के अपनी फसल बचाने के देसी नुस्खे, जो मिट्टी की ताकत भी बढ़ाएं

धान की खेती में खरपतवार सबसे बड़ी मुसीबत मानी जाती है. मकरा घास समेत कई तरह की जंगली घासें खेत पर कब्जा कर लेती हैं और फसल का दम घोंट देती है. पुराने समय में किसान इनसे निपटने के लिए अलग-अलग देसी तरीके अपनाते थे. आप भी इन तरीकों को अपनाकर बिना रसायन और बिना खर्च के अपनी धान की फसल को बचा सकते हैं. तो चलिए जानते हैं वो देसी तरीके जो आज भी काम आते हैं.

धान के खेतों में मकरा घास सबसे ज्यादा परेशानी देती है. यह मिट्टी की पूरी ताकत खींच लेती है और पौधों को कमजोर कर देती है. अगर समय पर इसे नहीं हटाया गया तो पूरी फसल की बढ़त रुक जाती है. सिर्फ मकरा ही नहीं, सावाघास, कोदों, बनरा कनकवा, सफेद मुर्गा, भंगरा, बड़ी दुद्धी, दूब और मोथा भी धान के दुश्मन हैं. ये सब मिलकर खेत पर कब्जा कर लेते हैं. किसान चाहे जितनी मेहनत कर लें, अगर खरपतवार हटाए नहीं गए तो फसल कमजोर ही रहती है.

पहले किसान जुताई करके खेत को छोड़ देते थे. धूप लगने से घास-फूस सूख जाता था और फिर किसान उसे इकट्ठा करके खेत से बाहर फेंक देते थे. इस पूरी प्रक्रिया को चिखुरना कहा जाता था, जिससे खेत साफ और ताकतवर बनता था.

पहले खरपतवार से निपटने के लिए किसान जुताई के बाद खेत में पानी भर देते थे. पानी में पड़े खरपतवार धीरे-धीरे सड़ जाते थे और खेत बिल्कुल साफ हो जाता था. इसे अमिला लगाना कहा जाता था और यह तरीका बिना खर्च के बहुत कारगर था.

धान की रोपाई के बाद भी खरपतवार दोबारा निकल आते थे, तो किसान खुरपी लेकर खेत में उतरते और इन्हें हाथों से निकालते थे. इसे पुन्नहर कहा जाता था और यह मेहनत खेती की जान बचा लेती थी.

पुराने समय में किसान खरपतवार खत्म करने के लिए जहरीले रसायन इस्तेमाल नहीं करते थे. उनके देसी तरीके ही खेती को सुरक्षित रखते थे और अनाज पोषण से भरपूर होता था. आप चाहें तो इन पुराने तरीकों को अपनाकर अपनी धान की फसल को बचा सकते हैं और मिट्टी की ताकत भी बरकरार रख सकते हैं.

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