उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में 40-50% बढ़ोतरी के प्रस्ताव ने आम जनता की चिंता बढ़ा दी है. पहले से ही महंगाई का दबाव झेल रहे लोग अब बिजली के बढ़ते बिलों को लेकर आशंकित हैं. बिजली विभाग भले ही इस फैसले को राजस्व संतुलन और सुधार की दिशा में उठा गया कदम बता रहा हो, लेकिन उपभोक्ताओं की नज़र में यह प्रस्ताव किसी भी तरह से जायज नहीं माना जा रहा.
ग्राम्य इलाकों में खेती पूरी तरह से ट्यूबवेल से सिंचाई पर निर्भर करती है. ऐसे में बिजली दरों की बढ़ोतरी सीधे कृषि पर प्रहार मानी जा रही है. गाजीपुर के फूलनपुर में लोकल निवासी सौरभ सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री जी ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. लेकिन जब सिंचाई का सबसे बड़ा साधन ही महंगा हो जाएगा, तो खेती कैसे बचेगी? 40-45% दरें बढ़ने के बाद किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएंगे.”
ई-व्हीकल मालिकों की चिंता, विकल्प खत्म पेट्रोल-डीज़ल की महंगाई से बचने के लिए ई-व्हीकल अपनाने वाले लोग अब बिजली दरों से परेशान हैं. शिक्षक अवनीश प्रताप सिंह रघुवंशी ने कहा, “मैंने इलेक्ट्रिक बाइक खरीदी थी ताकि पेट्रोल के बढ़ते दाम से बच सकूं लेकिन अगर बिजली भी इतनी महंगी हो जाएगी तो चार्जिंग पर ही खर्च बढ़ जाएगा. आम आदमी आखिर किस रास्ते पर जाए- पेट्रोल महंगा या बिजली महंगी?”
स्मार्ट मीटर और नई दरें: मिडिल क्लास की जेब पर वार स्मार्ट मीटर लागू होने के बाद से ही उपभोक्ताओं के सामने बिल की पारदर्शिता का संकट है. ग़ाज़ीपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता समरेंद्र सिंह ने कहा, “लोगों को समझ ही नहीं आता कि मीटर कैसे रीडिंग ले रहा है. महीने का बिल पहले से ही बढ़ा हुआ है. अगर अब 50% तक दरें और बढ़ गईं तो मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास का बजट पूरी तरह चरमरा जाएगा. क्या जनता फिर से लालटेन युग में लौटे?”
मुफ्त बिजली की मांग और गुस्से का इजहार स्थानीय निवासी शुभम सिंह ने कहा, “सरकार को कम-से-कम 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त देनी चाहिए. उन्होंने बताया कि उनका बिल पहले 200-300 रुपये आता था, लेकिन अब 400-500 रुपये तक पहुंच रहा है। यह सीधे मिडिल क्लास की आय पर हमला है. वहीं कुछ निवासियों ने यह आरोप भी लगाया कि आज भी बहुत से लोग ‘कटिया कनेक्शन’ से मुफ्त बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि ईमानदारी से बिल भरने वालों पर बोझ डाला जा रहा है.”
विकास या जनता की जेब पर बोझ? जनता की राय साफ है कि बिजली दरों में यह प्रस्तावित बढ़ोतरी किसी भी हाल में उचित नहीं है. पहले से महंगाई, स्मार्ट मीटर की परेशानियाँ और अब बिजली का अतिरिक्त बोझ—इन सबने आम आदमी की नाक में दम कर दिया है. सवाल उठ रहा है कि क्या विकास का मतलब जनता की जेब खाली करना है? अगर यह फैसला लागू हुआ, तो यह सीधे तौर पर जनता की रोज़मर्रा की जिंदगी पर कुठाराघात साबित होगा.