Uttar Pradesh

पुण्यतिथि विशेष : कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की लालसेना ने चंबल में छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के



इटावा. डाकुओं के आंतक लिए कुख्यात समझी जाने वाली चंबल घाटी में आजादी की मुहिम अर्जुन सिंह भदौरिया ने कमांडर के रूप मे चलाई. अर्जुन सिंह भदौरिया की अगुवाई में चंबल मे स्थापित की गई लालसेना की यादें आज भी लोगों के जहन मे समाई हुई है. आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लाल सेना के कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की पुण्यतिथि दिवस पर 22 मई को उनकी जन्मस्थनी बसरेहर ब्लॉक के अंतर्गत लोहिया गांव में स्मृति समारोह का आयोजन किया गया है.
आजादी के योद्धा कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने चंबल घाटी में हजारों क्रांतिकारियों को ट्रेनिंग देकर फिरंगी सरकार की चूलें हिलाने के लिए सशस्त्र क्रांति का सबसे उम्दा प्रयोग किया था. करो या मरो आंदोलन के दौरान कमांडर को 44 वर्ष की सजा हुई और अपने पूरे जीवनकाल में वह करीब 52 बार जेल गए.

आजाद भारत में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया 1957, 1967 और 1977 में इटावा से लोकसभा सांसद चुने गए. इटावा मे शैक्षिक पिछड़ेपन की समस्या, आवागमन के लिए पुलों का आभाव जैसी तमाम सरोकारी समस्याओं को वे सदन में प्रमुखता से उठाते रहे. लाल सेना की गौरवशाली विरासत की याद में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की समाधि स्थल पर समारोह का ऐतिहासिक आयोजन किया गया है.

लाल सेना के रणबांकुरों को आजादी के 75 वां वर्ष में उचित सम्मान के लिए कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया स्मृति समारोह के संयोजक क्रांतिकारी लेखक शाह आलम राना ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और इटावा सांसद को पत्र लिखकर 12 सूत्रीय मांगें सरकारों के समक्ष रखी हैं, जिसमें कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की स्मृति में बसरेहर मुख्य मार्ग पर भव्य गेट का निर्माण, लाल सेना के योद्धाओं की याद में लोहिया गांव में एक गौरवमयी स्मारक, वाचनालय, गैलरी, संग्रहालय, सभागार का निर्माण और कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया के नाम पर अमृत महोत्सव वर्ष में भारतीय डाक टिकट जारी किए जाने की मांग शामिल है.

22 मई को जिला प्रशासन द्वारा बसरेहर ब्लॉक के लोहिया गांव में प्रात 10 बजे कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया को सलामी देने से समारोह की विधिवत शुरुआत होगी. लाल लेना के कमांडर के जीवन से जुड़े विविध पहलुओं को समेटे फोटो प्रदर्शनी लगाई जाएगी.

करो या मरो के आंदोलन में कमांडर को 44 साल की कैद हुई
कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया के बेटे सुधींद्र भदौरिया बताते हैं कि चंबल में लालसेना के जन्म की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है. उस समय हर कोई आजादी का बिगुल फूंकने मे जुटा हुआ था. इसलिए उनके पिता भी आजादी के आंदोलन में कूद पडे. उन्होंने चंबल घाटी में लालसेना का गठन करके लोगों को जोड़ना शुरू किया. छापामारी मुहिम जोरदारी के साथ शुरू की. उनका कहना है कि इसकी प्रेरणा उनको चीन और रूस में गठित लालसेना से मिली थी, जो उस समय दोनो देशों में बहुत ही सक्रिय सशस्त्र बल था. उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में लाल सेना का गठन किया, जिसने चंबल घाटी में आजादी का बिगुल फूंकते हुए अंग्रेजी राज के छक्के छुड़ा दिए. इस क्रांतिकारी संग्राम में पूरा इटावा झूम उठा तथा करो या मरो के आंदोलन में कमांडर को 44 साल की कैद हुई.

जेल में अंग्रेज़ों ने हाथ-पैर में बेड़ियां डालकर रखा
कमांडर ने आजादी की जंग पूरी ताकत, जोश, कुर्बानी के जज्बे में सराबोर होकर लड़ी. उन्होंने बराबर क्रांतिकारी भूमिका अपनाई और लाल सेना में सशस्त्र सैनिकों की भर्ती की तथा ब्रिटिश ठिकानों पर सुनियोजित हमला करके आजादी हासिल करने का प्रयास किया. इस दौरान अंग्रेजी सेना की यातायात व्यवस्था, रेलवे डाक तथा प्रशासन को पंगु बना दिया. अंग्रेज इनसे इतने भयभीत थे कि उन्हें जेल में हाथ-पैरों में बेड़ियां डालकर रखा जाता था. अपने उसूलों के लिए लड़ते हुए वे तकरीबन 52 बार जेल गए.

आजादी की लड़ाई में अपनी जुझारू प्रवृत्ति और हौसले के बूते अंग्रेजी हुकूमत का बखिया उधड़ने वाले अर्जुन सिंह भदौरिया को स्वतंत्रता सेनानियों ने कमांडर की उपाधि से नवाजा. कमांडर ने इसी जज्बे से आजाद भारत में आपातकाल का जमकर विरोध किया. तमाम यातनाओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी, जिससे प्रभावित क्षेत्र की जनता ने सांसद चुनकर उन्हें सर आंखों पर बैठाया.

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10 मई 1910 को बसरेहर के लोहिया गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौरिया ने बिना किसी खून खराबे के अंग्रेजों को नाको चने चबबा दिये. इसी के बाद उन्हें कमांडर कहा जाने लगा. 1957,1962 और 1977 में इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए. कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया का संसद में भी बोलने का अंदाज बिल्कुल जुदा रहा. 1959 में रक्षा बजट पर सरकार के खिलाफ बोलने पर उन्हें मार्शलों की मदद सदन से बाहर निकाल दिया गया. लोहिया ने उस वक्त उनका समर्थन किया.

अर्जुन सिंह भदौरिया की एक खासियत यह भी रही है कि चाहे अग्रेंजी हुकूमत रही हो या फिर भारतीय कमांडर कभी झुके नहीं है. इटावा के बकेवर कस्बे में 1970 के दशक में उन्होंने पुलिस के खिलाफ आंदोलन चलाया. लोग उसे आज भी बकेवर कांड के नाम से जानते हैं. पूरे जीवनकाल में लोगों की आवाज उठाने के कारण वह 52 बार जेल भेजे गए. आपातकाल में उनकी पत्नी तत्कालीन राज्यसभा सदस्य सरला भदौरिया और पुत्र सुधींद्र भदौरिया अलग-अलग जेलो में रहे.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Chambal news, Freedom fightersFIRST PUBLISHED : May 22, 2022, 07:27 IST



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