उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में एक महिला की कहानी है जिसने हार नहीं मानी और समाज के लिए मिसाल बन गई. प्रियंका सोनकर ने पति की मौत के बाद टूटी जिंदगी को स्वयं सहायता समूह के सहारे फिर से संवार लिया. कभी बेसहारा सी लगने वाली प्रियंका आज न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हैं, बल्कि अपनी तीनों बेटियों की पढ़ाई और परवरिश भी सफलतापूर्वक कर रही हैं।
प्रियंका सोनकर कौशांबी जिले की सिराथू तहसील क्षेत्र के मौलीतीर गांव की रहने वाली हैं। उनके पति उमाशंकर की साल 2019 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। इसके बाद परिवारवालों ने भी साथ छोड़ दिया। अकेली, तीन बेटियों के साथ जीवन की राह बेहद मुश्किल हो गई। प्रियंका बताती हैं कि उस समय ऐसा लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया हो।
लेकिन 2022 में उन्होंने ‘मां कड़े वाली स्वयं सहायता समूह’ का गठन किया। पहली बार मिले 15,000 रुपए के रिवॉल्विंग फंड से कोई बड़ा काम शुरू नहीं हो सका। मगर दूसरी बार मिले 1.5 लाख रुपए से प्रियंका ने चप्पल बनाने की मशीन खरीद ली। घर पर ही काम शुरू किया और धीरे-धीरे उनका कारोबार चल निकला।
प्रियंका अब हर महीने 10 से 15 हजार रुपए कमा रही हैं। उनके बनाए चप्पल न सिर्फ जिले में, बल्कि अजुहा और प्रतापगढ़ के बाजारों में भी बिक रहे हैं। प्रियंका कहती हैं, ‘पति की मौत के बाद मेरे पास कोई सहारा नहीं था। स्वयं सहायता समूह ने ही मेरी जिंदगी को नई दिशा दी है।’ वह कहती है कि आज उनकी सफलता सब को जवाब दे रही है।
डेढ़ लाख रुपए से खरीदी गई मशीन प्रियंका की जिंदगी का टर्निंग प्वॉइंट साबित हुई। अब वह न सिर्फ कमाई कर रही हैं बल्कि बेटियों की पढ़ाई और जरूरतें भी पूरी कर रही हैं। प्रियंका जैसी महिलाएं पूरे जिले के लिए प्रेरणा हैं। विभाग आगे भी ऐसे समूहों को प्रशिक्षण और सहयोग देता रहेगा। साथ ही, लगातार ग्रामीण क्षेत्रों में समूहों का गठन कर महिलाओं को आत्म निर्भर बनाया जा रहा है।