प्रातः कालीन भ्रमण सदैव से ही जीवन शैली को प्रभावित करता रहा है. उत्तम स्वास्थ्य के लिए सुबह सुबह घूमना लाभकारी होता है. स्वच्छ नीला आकाश, हरी घास पर ओस की ठंडी-ठंडी बूंदें, शीतल मन्द सुगन्धित हवा निश्चित रूप से जीवन को खुशहाली से भरकर रोगमुक्त कर देती है. बीते समय में बच्चों को माता पिता जल्दी उठने की हिदायतें देते रहते थे उसका यही अर्थ था कि प्रकृति की सौन्दर्यशाली छटा को देखकर सभी मन्त्रमुग्ध हो स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें. लेकिन आज तो पूरा वातावरण धुन्ध की चादर ओढ़े स्वयं ही सुप्तावस्था में रहता है.ना नीला आसमान है ना शीतल हवा, ना ओस की बूंदे हैं और ना ही प्रकृति की हरियाली, क्या हो गया है सांसों को जो धीमी हो गई हैं. कहां गया वो उत्साह, अब तो आंखों में जलन उतर गई है, जिन्दगी में बीमारियों ने दस्तक देनी शुरू कर दी है. ऐसे जीवन की तो कल्पना भी नहीं की थी, कभी मास्क, कभी घर से ना निकलना, कभी धूमिल वातावरण से असंख्य बीमारियों के होने का डर, ये सब भोगना आज हमारी विवशता हो गई है. हम आधुनिक तो होते जा रहे हैं पर इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. हरियाली समाप्त करते जाना, वाहनों का बोझ बढ़ना, प्लास्टिक की अतिशयता, कंक्रीट की दीवारें खड़ी करते जाना, अंधाधुन्ध पेड़ों का काटना, धूल-मिट्टी सीमेंट से पर्यावरण का आवरण बनाना और बदले में हवा पानी खुशहाली की आशा करना, क्या हम खुशहाली पाने के अधिकारी हैं. जो दे रहे हैं वही तो मिलेगा, प्रकृति का दामन घायल कर रहे हैं तभी तो स्वयं भी लहूलुहान हो रहे हैं. आज बड़े शहर ही नहीं, छोटे शहर भी प्रदूषण की मार से त्रस्त हैं.प्रदूषण का बढ़ता प्रभाव हमारी खुशियों को लील रहा है. हर वो व्यक्ति प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है जो स्वार्थ के वशीभूत होकर उन कारकों का प्रयोग कर रहा है जो वातावरण को नष्ट कर रहे हैं. कोई यदि पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत रूप से कुछ करना भी चाहे तो उसको कोई सहयोग नहीं करता. सभी का दायित्व है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को नजरअन्दाज करें उनके प्रयोग से बचें. ये सोचना कि मेरे अकेले के करने से क्या प्रदूषण रुक जाएगा, यही सोच प्रदूषण बढ़ाती है. पराली जलाने को मना करते हैं पराली जलाते हैं, पटाखे छोड़ने को मना करते हैं पटाखे जलाए जाते हैं. प्लास्टिक का प्रयोग ना करें, पर करते हैं. वाहन की तय सीमा का पालन करें, नहीं करते तो जिम्मेदार तो हम ही हुए. दोष क्यों पर्यावरण को दिया जाए. उसका सीना तो वैसे ही दग्ध है. कहावत है- बूंद बूंद से घड़ा भरता है तो शुरू करें ना अपने आप से कुछ तो प्रतिज्ञा करें. सबके छोटे-छोटे प्रयासों से कुछ तो हासिल होगा.नीरा जी किसी भी समारोह में जाती हैं, तो प्लास्टिक की छोटी बोतल नहीं लेती. पानी के लिए भी प्लास्टिक का गिलास मुंह से लगाकर खराब नहीं करतीं. पानी पीकर उस स्थान पर ही लगा देती हैं. जानती हैं एक गिलास से कुछ नहीं होगा, पर उन्हें अच्छा लगता है कि उन्होंने प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया. आजकल स्वच्छ नीला आकाश धुन्ध की मोटी चादर से लिपटा हुआ है. सूर्य की किरणें भी जिसे विभेद नहीं कर पा रही हैं सूर्य जैसा शक्तिशाली भी जहां विवश हो गया है, वहां हम क्या कर सकते हैं, जबकि पर्यावरण के रूप को हम ही गढ़ रहे हैं.सांसों पर असर डालता वातावरण मासूमों पर तो कितना प्रभाव डालता होगा. बड़ों की अपेक्षा बच्चों में सांस लेने की गति तीव्र होती है, इसलिए उनकी सांसों पर तो पहरा ही लग गया है. उनका बचपन तो सुबह की ठन्डी हवा को स्वच्छ चांदनी को खिलती धूप को देखे बिना ही व्यतीत हो रहा है. उन्हें तो विरासत में कृत्रिमता ही परोसी जा रही है, क्या भविष्य दे रहे हैं हम मासूमों को कुछ तो फर्ज निभाइये और पर्यावरण संरक्षण का भार अपने कन्धों पर उठाने को तैयार हो जाइए. हालात इतने गम्भीर हो रहे हैं कि पानी के छिड़काव हो रहे हैं, ऑड-इवन नम्बर से गाड़ियों के संचालन करने की योजना है. दिल्ली में तो स्कूल भी बन्द कर दिए गए हैं. कृत्रिम वर्षा कराई जाएगी. दूसरे राज्यों की पंजीकृत टैक्सियों पर भी प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. शहरों की हवा जहरीली बनती जा रही है, सांस लेना दूभर हो रहा है, नागरिकों की सुरक्षा के लिए इन्तजाम किए जा रहे हैं. इतने पर भी प्रदूषण की मार सब पर भारी पड़ रही है. सरकार की नीतियां और लोगों की कार्यवाही दोनों ही अयोग्य सिद्ध हो रहीं हैं. ना निर्माण कार्य बन्द हो रहे हैं, ना ही लोग जागरूक हो रहे हैं.कोरोना काल में बिना आक्सीजन के सांसों की रफ्तार रुक गई थी, तब सबने मौत की भयावहता को महसूस किया था, वैसा ही संकट फिर से ना आने पाए, इस हेतु प्रयास करें कि हमारा पर्यावरण अपने खुशहाल रूप को फिर से प्राप्त करे. प्रदूषण का संकट सारी दुनिया झेल रही है जलवायु परिवर्तन भी प्रभाव डाल रहा है, यद्यपि पर्यावरण से प्रेम करने वालों की भी कमी नहीं है पर उनके प्रयास तब असफल हो जाते हैं जब दूसरे उनके कार्यों में आगे आकर सहयोग नहीं करते. कुछ ऐसे भी प्रेमी हैं जो पर्यावरण के संरक्षण के लिए दृढ़संकल्प होते हैं, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित जादव पायेंग को पर्यावरण प्रेम के कारण ‘फॉरेस्ट आफ द मैन’ के नाम से सम्मानित किया गया है. जिन्होंने चार करोड़ पौधों का जंगल अपनी मेहनत से बना दिया. उन्होंने बांस के एक पौधे से बंजर रेतीली जमीन पर वनीकरण करने का प्रयास किया. उनका सफर आसान नहीं था, पर उन्होंने कठोर परिस्थितियों और कम संसाधनों के बावजूद दिन रात मेहनत करके अपने दृढ़ संकल्प से उजाड़ जमीन को सम्पन्न जंगल में बदल दिया. ऐसे प्रकृति प्रेमी के जीवन से कुछ सीखकर हमें अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण मुक्त करने का प्रयास करना चाहिए.बढ़ते प्रदूषण के लिए यूपी सरकार ने दीर्घकालीन प्रोजेक्ट बनाया है, जिसमें प्रदूषण के कारकों को जाना जाएगा. पराली का जलाना, वाहनों का धुआं फैक्टरियों से निकला कचरा, राजमार्गों के निकट के इलाकों का किया प्रदूषण, किस कारक का प्रदूषण बढ़ाने में कितना योगदान है जिलेवार जानकारी लेकर रिर्पोट तैयार होगी, जिससे उसे जड़ से मिटाया जा सके. विश्वविद्यालयों को शामिल किया जाएगा,109 प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिल गई है, जिस पर विभिन्न इन्जीनियरों द्वारा शीघ्र काम किया जाएगा. प्रदूषण हमारे लिए जानलेवा ना हो जाए, मासूमों की जिन्दगी को कई वर्ष कम ना कर दे इसलिए इसे रोकने की कोशिश सभी को करनी चाहिए जिससे सब खुली हवा में सांस ले सकें.ब्लॉगर के बारे मेंरेखा गर्गलेखकसमसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.और भी पढ़ें
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Shivraj Patil’s last rites performed with state honours; Om Birla, Kharge present
In between, he was a member of the Maharashtra legislative assembly from Latur for two terms between 1972…

