प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2007 रामपुर सीआरपीएफ कैंप आतंकी हमले के दोषियों की फांसी और उम्रकैद की सजा को पलट दिया है। हाईकोर्ट ने दोषसिद्ध सजायाफ्ता आरोपियों की अपील पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। कोर्ट ने फांसी व उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है, लेकिन शस्त्र अधिनियम की धारा 25 में दस साल की कैद व प्रत्येक को एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है और बाकी सजा पूरी करने का निर्देश दिया है।
सेशन जज रामपुर ने 2 नवंबर 2019 को आतंकी हमले के चार आरोपियों मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूक को फांसी की सजा सुनाई थी। जबकि जंग बहादुर खान उर्फ बाबा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। दो अन्य आरोपियों मोहम्मद कौसर और गुलाब खान को बरी कर दिया गया था। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चश्मदीद गवाहों ने शिनाख्त परेड में पहचानने में गलती की। कहा अंधेरा था अभियुक्त पहचान में नहीं आये। जहां तक परिस्थिति जन्य साक्ष्य का प्रश्न है, 1 जनवरी 2008 को लिया गया फिंगर प्रिंट सुरक्षित नहीं रखा गया। बरामद असलहों को माल खाने में जमा नहीं किया गया। घटना की विवेचना दोषपूर्ण रही। जिसके कारण अभियुक्त बरी हुए। इसके अलावा अभियोजन संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा। पुलिस लापरवाही पर सरकार को विभागीय कार्यवाही करनी चाहिए। कोर्ट ने सरकार को लापरवाह पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच कार्यवाही करने की छूट दी है।
31 दिसंबर, 2007 के हमले में सीआरपीएफ के सात जवान और एक रिक्शा चालक शहीद हो गए थे। आतंकवादियों ने कैंप पर गोलीबारी की थी और ग्रेनेड फेंके थे। मुख्य साजिशकर्ता सैफुल्लाह बाद में 18 मई, 2025 को पाकिस्तान में मारा गया था। अपील पर सुनवाई के दौरान आरोपियों की तरफ से हाइकोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता इमरान उल्लाह को न्यायमित्र (Amicus Curie) नियुक्त किया था। जिनके साथ अधिवक्ता विनीत विक्रम और फ़ैज़ अहमद ने अपील पर कोर्ट में पक्ष रखा था।

