स्ट्रोक सिर्फ शरीर को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि दिमाग पर भी गहरा असर डाल सकता है. स्ट्रोक के बाद कई लोगों को डिप्रेशन का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन क्या आपको पता है, स्ट्रोक के बाद होने वाला यह डिप्रेशन ज्यादातर कब होता है? आइए जानते हैं एक दिलचस्प अध्ययन के बारे में, जिसने इस सवाल का जवाब ढूंढ निकाला है.
एक ब्रिटिश अध्ययन के अनुसार, स्ट्रोक के बाद होने वाले डिप्रेशन (पोस्ट-स्ट्रोक डिप्रेशन) के 87.9% मामले स्ट्रोक के 5 साल के अंदर होते हैं. ये अध्ययन इस बात का सुझाव देता है कि इस अवधि में नियमित रूप से डिप्रेशन की जांच की जानी चाहिए.18 साल तक चले इस अध्ययन में पाया गया कि स्ट्रोक के बाद डिप्रेशन होने की संभावना 59.4% थी. इनमें से 33.4% मामले स्ट्रोक के 3 महीने के अंदर और 54.6% मामले 1 साल के अंदर सामने आए. अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता, किंग्स कॉलेज लंदन के डॉ. लू लियू ने बताया कि स्ट्रोक के बाद ज्यादातर मामलों में डिप्रेशन 5 साल के अंदर होता है. इसलिए स्ट्रोक के बाद सभी मरीजों की 5 साल तक नियमित रूप से डिप्रेशन की जांच की जानी चाहिए. हालांकि, डिप्रेशन स्ट्रोक के 3 से 6 महीने बाद भी शुरू हो सकता है.
अध्ययन में क्या पाया गया?अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन मरीजों में स्ट्रोक के 3 महीने बाद डिप्रेशन पाया गया, उनमें से 46.6% मरीज 1 साल में और 20.3% मरीज 2 साल में ठीक हो गए. लेकिन डिप्रेशन के दोबारा होने की दर 66.7% रही, जिनमें से ज्यादातर मामले (94.4%) ठीक होने के 5 साल के अंदर सामने आए. डॉ. लियू ने बताया कि स्ट्रोक के मरीजों में डिप्रेशन ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक बना रह सकता है. आम लोगों में डिप्रेशन के दोबारा होने की दर 42% है, जबकि स्ट्रोक के मरीजों में यह दर 66.7% है.
3864 स्ट्रोक मरीजों पर हुआ अध्ययनअध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक के बाद डिप्रेशन के लंबे प्रभावों पर कम शोध होने की बात कही. साथ ही, उन्होंने यह भी पाया कि स्ट्रोक के तुरंत बाद और बाद में होने वाले डिप्रेशन और हल्के और गंभीर डिप्रेशन के बीच तुलनात्मक अध्ययन बहुत कम किए गए हैं. इस अध्ययन में लंदन के साउथ लंदन स्ट्रोक रजिस्टर से 3,864 स्ट्रोक मरीजों का डेटा लिया गया, जिनका जनवरी 1995 से जुलाई 2019 के बीच डिप्रेशन का आकलन किया गया था. अध्ययन में शामिल मरीजों में से 55.4% पुरुष, 62.5% श्वेत थे और इनकी औसत आयु 68 साल थी. डिप्रेशन के आकलन के लिए हॉस्पिटल एनजाइटी एंड डिप्रेशन स्केल का इस्तेमाल किया गया.
अध्ययन में पाया गया कि हल्के और गंभीर डिप्रेशन के मामले लगभग बराबर थे, लेकिन गंभीर डिप्रेशन स्ट्रोक के बाद जल्दी शुरू होता था, लंबे समय तक रहता था और जल्दी दोबारा होता था. अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन रोगियों में डिप्रेशन ज्यादा गंभीर होता है, उनका लंबे समय तक इलाज और देखभाल की जरूरत होती है.



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