उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले हजारों छात्रों के लिए एक बहुत बुरी खबर है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मदरसा बोर्ड की ‘कामिल’ (ग्रेजुएशन) और ‘फाजिल’ (पोस्ट ग्रेजुएशन) डिग्री को अवैध करार दे दिया है. कोर्ट का कहना है कि डिग्री देने का हक सिर्फ यूजीसी एक्ट के तहत बनी यूनिवर्सिटीज को है. मदरसा बोर्ड ऐसा करके नियमों का उल्लंघन कर रहा था. इस फैसले के बाद करीब 32 हजार छात्रों का करियर खतरे में पड़ गया है. जो छात्र सालों से ये कोर्स कर रहे थे, अब वे अधर में लटक गए हैं. अपनी पढ़ाई बेकार होती देख छात्र अब नए विकल्पों की तलाश में हैं. कई छात्र मजबूरी में यूनिवर्सिटीज में बीए और एमए के लिए नए सिरे से एडमिशन ले रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘असंवैधानिक’ बताया है.
उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह समय बहुत कठिन है. वाराणसी के मदरसा जामिया फारुकिया के छात्र सकलैन रजा की कहानी सबकी हकीकत बयां करती है. उन्होंने फाजिल का फर्स्ट ईयर पास कर लिया था. लेकिन अब डिग्री की वैल्यू न होने से वे परेशान हैं. अपना भविष्य बचाने के लिए वे अब काशी विद्यापीठ से बीए करेंगे. उन्होंने कहा कि कामिल और फाजिल में लगाए गए उनके कीमती साल बर्बाद हो गए. यही हाल मऊ के मोहम्मद साद निजामी का है. वे समझ नहीं पा रहे कि अब पढ़ाई छोड़ दें या कोई छोटा-मोटा काम धंधा शुरू करें. सिद्धार्थ नगर के गुलाम मसीह भी अब यूनिवर्सिटी की डिग्री लेने का मन बना चुके हैं. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि कोर्ट में चल रही सुनवाई से कोई रास्ता निकलेगा.
छात्रों का साल बचाने के लिए एक कानूनी कोशिश भी चल रही है. टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है. उनकी मांग है कि मदरसा छात्रों को लखनऊ की ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा यूनिवर्सिटी से जोड़ दिया जाए. इससे उनकी परीक्षाएं नियमित हो सकेंगी और उन्हें वैलिड डिग्री मिल जाएगी. संगठन के महासचिव दीवान साहब जमां खां ने बताया कि मदरसे के ज्यादातर बच्चे गरीब होते हैं. वे महंगी फीस देकर प्राइवेट कॉलेजों में नहीं पढ़ सकते. कोर्ट ने इस मामले में सरकार और यूजीसी से जवाब मांगा है.
यूपी सरकार के मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने छात्रों को भरोसा दिया है. उन्होंने कहा कि सरकार इस मसले का हल निकालने पर विचार कर रही है. जो लोग इन डिग्रियों पर नौकरी कर रहे हैं, उन पर कोई आंच नहीं आएगी. वहीं बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के कुंवर बासित अली की राय थोड़ी अलग है. उनका मानना है कि मदरसा बोर्ड का सिलेबस यूनिवर्सिटी लेवल का नहीं है. इसलिए बीच सत्र में छात्रों को यूनिवर्सिटी से जोड़ना अव्यावहारिक होगा. अगर उन्हें जोड़ना ही है तो नए सिरे से एडमिशन लेना चाहिए. अब देखना होगा कि सरकार हजारों छात्रों के भविष्य को लेकर क्या फैसला लेती है.

