हार्ट रिदम डिसऑर्डर भारत में पार्किंसन रोग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन हाल के सालों में एक्सपर्ट ने एक और गंभीर समस्या की पहचान की है. वो है एटिपिकल पार्किंसोनियन सिंड्रोम (APS). यह बीमारी देखने में पार्किंसन जैसी लगती है, लेकिन इसके लक्षण, प्रभाव और इलाज की प्रक्रिया बिल्कुल अलग होती है. गलत पहचान और देर से इलाज की वजह से यह बीमारी मरीज के लिए जानलेवा बन सकता है.
मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड में नॉर्थ इंडिया ऑपरेशन्स की लैब प्रमुख डॉ. गीता चोपड़ा ने बताया कि एटिपिकल पार्किंसोनियन सिंड्रोम दरअसल कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का ग्रुप है, जो पार्किंसन से मिलते-जुलते लक्षण दिखाता है लेकिन इनका असर तेज और व्यापक होता है. इसमें डिमेंशिया (याददाश्त की कमी), बोलने में बदलाव, और चलने-फिरने में परेशानी जैसे लक्षण शामिल हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआत में ये लक्षण आम पार्किंसन जैसे ही लगते हैं, जिससे बीमारी की पहचान मुश्किल हो जाती है.
पहचानने के लिए लक्षण* बीमारी की शुरुआत में ही गिरने की घटनाएं या चलने में दिक्कत.* याददाश्त का जल्दी कमजोर होना या भ्रम की स्थिति.* लक्षणों का तेजी से बढ़ना.* आंखों की हरकतों में असामान्यता.* पार्किंसन की दवाओं (जैसे Levodopa) का असर न करना.* ब्लड प्रेशर और मूत्र नियंत्रण जैसी स्वचालित शारीरिक क्रियाओं पर असर.
कैसे होती है APS की पहचान?एटिपिकल पार्किंसोनियन सिंड्रोम की कोई निश्चित जांच नहीं है, जैसे खून की जांच या स्पाइनल फ्लूइड टेस्ट. डॉक्टरों को मरीज के लक्षण, उनका इतिहास और बीमारी की प्रगति देखकर ही बीमारी की पहचान करनी पड़ती है. एमआरआई और पीईटी स्कैन जैसी तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है.
जल्द पहचान ही है उपायएटिपिकल पार्किंसोनियन सिंड्रोम की पहचान हो जाए, तो मरीज की जीवन क्वालिटी को बेहतर किया जा सकता है. इससे न केवल गलत दवाओं से बचा जा सकता है, बल्कि सही देखभाल और सपोर्ट प्लान भी बनाया जा सकता है. इसलिए, अगर पार्किंसन के लक्षणों में कुछ अलग नजर आएं, तो तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.