पंचायत चुनाव में चंद्रशेखर ‘रावण’, और आजम का गठजोड़ .. बन सकता है सपा-बीएसपी के लिए खतरा, जानें कैसे?

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित चेतना और सामाजिक न्याय की आवाज़ को बुलंद करने वाले युवा नेता चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ अब पंचायत चुनाव-2026 में भी अपनी गहरी छाप छोड़ने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटव और अन्य दलित बाहुल्य जिलों में उनका प्रभाव लगातार बढ़ता नजर आ रहा है. एक समय में केवल आंदोलनकारी छवि तक सीमित रहे चंद्रशेखर रावण अब धीरे-धीरे खुद को एक ठोस राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जो बीजेपी और सपा के लिए एक खतरे का संकेत हो सकता है.

हालांकि चंद्रशेखर रावण की अगुवाई वाली आज़ाद समाज पार्टी ने भले ही अभी तक कोई बड़ी चुनावी जीत हासिल न की हो, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, शामली और बागपत जैसे जिलों में चंद्रशेखर रावण के प्रति युवाओं और दलित वर्ग में आकर्षण बढ़ा है. पिछले लोकसभा चुनावों में चंद्रशेखर रावण ने नगीना से सपा और बीजेपी की लहर के बीच जीत दर्ज की, जो बताता है कि जमीनी स्तर पर चंद्रशेखर की राजनीतिक पहुंच मजबूत हो रही है.

बसपा का विकल्प बनने की कोशिश
एक समय था जब पश्चिमी यूपी में दलित मतदाता पूरी तरह से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ खड़े नजर आते थे, लेकिन पिछले एक दशक में बसपा की निष्क्रियता और नेतृत्व की कमी ने इस वर्ग को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है. चंद्रशेखर रावण इसी शून्य को भरने का प्रयास कर रहे हैं. पंचायत चुनावों से पहले चंद्रशेखर रावण की सक्रियता और संगठन की ताकत ने यह संकेत दिया है कि वह केवल भाषणों तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि सत्ता की बुनियाद गांव-गांव तक मजबूत करना चाहते हैं.

क्या ASP बन सकती है कमजोर बीएसपी का विकल्प?पश्चिमी यूपी में जहां जाट, मुस्लिम और दलित समीकरण राजनीति की दिशा तय करते हैं, वहां चंद्रशेखर की उपस्थिति इन समीकरणों में एक नया तत्व जोड़ रही है. खासकर युवा मुस्लिमों के एक वर्ग और पिछड़ी जातियों के कुछ समूहों में ASP को लेकर सकारात्मक रूझान देखा जा रहा है. हालांकि अभी ASP को राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा जनादेश नहीं मिला है, लेकिन चंद्रशेखर खुद भी पंचायत चुनावों को पार्टी के “मास वर्कर डेवलपमेंट मिशन” के तौर पर देखते हैं. यही वजह है कि पंचायत चुनावों के जरिए वे अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की कोशिशों में लगे हुए हैं. पंचायत चुनावों से पहले उनकी पार्टी की सक्रियता और असर इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में वे बसपा का मजबूत विकल्प बन सकते हैं. अगर यही रफ्तार बनी रही तो विधानसभा चुनावों में भी उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा.

‘रावण’ और आजम का गठजोड़ .. सपा-बीएसपी के लिए खतरा
उत्तर प्रदेश की राजनीति जातीय और साम्प्रदायिक समीकरणों पर गहराई से टिकी हुई है. ऐसे में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ‘रावण’ और सपा के वरिष्ठ नेता आज़म ख़ान के बीच कोई संभावित गठबंधन चुनावी समीकरणों को बड़े हद तक प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि आजम खान अभी जेल में है और अगले कई सालों तक चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन अनुभवी और राजनीति के शातिर खिलाड़ी आजम खान और युवा चंद्रशेखर ‘रावण’ का गठबंधन कई दलों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है. रावण और आजम का ये संभावित गठजोड़ मायावती के वोट बैंक को खत्म कर सकता है वहीं सपा के MY समीकरण पर भी भारी पड़ सकता है. गौरतलब है कि यूपी में दलित करीब 21% और मुस्लिम लगभग 19% आबादी के साथ चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

ये नेता बन सकता है ‘रावण’ के लिए चुनौतीपश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों दो नाम तेजी से चर्चा में हैं. एक चंद्रशेखर रावण, जो भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के संस्थापक हैं, और दूसरे ठाकुर पुरन सिंह, जो हाल के दिनों में एक उभरते हुए ठाकुर नेता के रूप में तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ठाकुर पुरन सिंह का बढ़ता जनाधार क्या चंद्रशेखर रावण की राजनीतिक जमीन को प्रभावित कर सकता है? यहां समस्या तब और बड़ी हो जाती है जब दोनों नेताओं के प्रभाव वाले इलाके आपस में टकराने लगते हैं, जैसे मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत और शामली.

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