Dhan ki Kheti: उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में इन दिनों धान की फसल का सीजन तेजी से चल रहा है. इसके अलावा बरसात के साथ ही किसानों ने खेतों में धान की रोपाई शुरू कर दी है. अच्छी पैदावार के लिए किसान तरह-तरह के जैविक और रासायनिक खादों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इस फसल में कई तरह की बीमारियां भी लग जाती हैं, जिससे फसल की ग्रोथ रुक सकती है और पैदावार पर भी असर पड़ता है. ऐसे में किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है.धान की फसल में मुख्य रूप से 6 प्रकार के रोग लगने का खतरा रहता है. अगर समय पर इनका इलाज न किया जाए तो इससे उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है. रायबरेली स्थित राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी कृषि अधिकारी शिवशंकर वर्मा (B.Sc. AG, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद) ने धान में लगने वाले इन रोगों और उनके आसान बचाव के तरीके बताए हैं.
धान की फसल में लगने वाले रोग और उनसे बचावखैरा रोग–धान के पौधे रोपने के करीब 2 हफ्ते बाद पुरानी पत्तियों के आधार पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनने लगते हैं. इससे पौधा बौना हो जाता है. बचाव के लिए खेत में 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले जरूर डालें.
झुलसा रोग–पौधे रोपने से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में यह रोग लग सकता है. इससे पत्तियों और तनों पर गहरे भूरे और सफेद धब्बे बनते हैं. इससे बचने के लिए बीज का उपचार जरूरी है और जिस पौधे पर लक्षण दिखें, उसे उखाड़कर फेंक दें.
पर्ण चित्ती या भूरा धब्बा रोग–इस रोग में पत्तियों पर गोल, अंडाकार भूरे धब्बे बनते हैं जिससे पत्तियां झुलस जाती हैं. इससे बचाव के लिए भी बीज उपचार करें और रोग ग्रस्त पौधे को निकालें.
जीवाणु पत्ती झुलसा रोग–बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में यह रोग अधिक होता है. पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती पीली हो जाती है. रोकथाम के लिए 1.25 किलोग्राम कॉपर हाइड्रोक्साइड को 150 लीटर पानी में घोलकर 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
कंडुआ (फाल्स स्मट)–यह रोग मुख्य रूप से अक्टूबर से नवंबर के बीच अधिक उपज देने वाली धान की किस्मों में देखा जाता है? यह रोग उन खेतों में ज्यादा फैलता है जहां यूरिया का अत्यधिक प्रयोग होता है और वातावरण में नमी अधिक रहती है. धान की बालियों के निकलते समय इस रोग के लक्षण साफ दिखाई देने लगते हैं? इससे बचाव के लिए सबसे पहले बीजों को नमक के घोल में उपचारित करें. इसके बाद बीजों को अच्छी तरह सुखाएं और नर्सरी में डालने से पहले प्रति किलो बीज पर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम-50 डब्ल्यूपी या 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें. इसके साथ ही उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करें और यूरिया की मात्रा अधिक न दें, इससे रोग की संभावना कम हो जाती है.
शीथ झुलसा (अंगमारी) रोग– यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनी (Rhizoctonia solani) नामक फफूंदी के कारण होता है, जो धान के पौधे पर गंभीर असर डालती है. रोग के लक्षण पौधे के आवरण (तने के बाहरी हिस्से) पर अंडाकार हरे या उजले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. आमतौर पर यह रोग जल की सतह के ऊपर वाले हिस्से में ज्यादा प्रभावी होता है. शीथ झुलसा की स्थिति में खेत में नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम कर देना चाहिए. साथ ही, जिस खेत में यह रोग फैल चुका है, उस खेत का पानी किसी अन्य खेत में नहीं जाना चाहिए. खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें ताकि पानी जमा न हो, इससे इस रोग पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है.
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किसानों के लिए सलाहकृषि विशेषज्ञों की मानें तो धान की फसल में इन रोगों से बचाव के लिए खेत की नियमित निगरानी करें. बीज उपचार जरूर करें और खेत में संतुलित खाद का प्रयोग करें. समय पर छिड़काव और उचित उपाय करने से फसल सुरक्षित रह सकती है और पैदावार में कोई नुकसान नहीं होगा.